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‘संदेसे आते हैं...', डिजिटल दुनिया में अब इतिहास बन जाएगा रजिस्टर्ड डाक, भारत में ऐसे शुरू हुआ था चिट्ठियों का सफर

India Post : कबूतर ही संदेश पहुंचाने का एकमात्र जरिया नहीं थे। भारत का पुराना डाक नेटवर्क दिल्ली सल्तनत के समय में काफी विकसित हुआ। भारतीय डाक विभाग के रिकॉर्ड के मुताबिक, करीब 1296 में अलाउद्दीन खिलजी ने रिले धावकों और घोड़ों की मदद से एक व्यवस्थित डाक व्यवस्था शुरू की

MoneyControl Newsअपडेटेड Aug 10, 2025 पर 11:24 PM
‘संदेसे आते हैं...', डिजिटल दुनिया में अब इतिहास बन जाएगा रजिस्टर्ड डाक, भारत में ऐसे शुरू हुआ था चिट्ठियों का सफर
India Post : भारतीय डाक विभाग, 1 सितंबर, 2025 से रजिस्टर्ड पोस्ट (Registered Post) सेवा बंद हो जाएगी।

India Post : चिट्ठी आई है, आई है, चिट्ठी आई है’, ‘संदेसे आते हैं, हमें तड़पाते हैं... कि घर कब आओगे’- बॉलीवुड में चिट्ठी पर कई गाने बने जो आज भी सबकी जुबान पर है। लेकिन आज के डिजिटल जमाने में चिट्ठी जिंदगी से गायब हो गई है। आखिरी बार आपने चिट्ठी कब लिखी थी? शायद आपको बस धुंधली-सी याद हो- कभी छुट्टी पर भेजा गया पोस्टकार्ड या किसी दूर के रिश्तेदार को लिखा गया पत्र। नए जेनरेशन के लिए तो डाक टिकट भेजना और लिफाफा सील करना शायद सिर्फ फिल्मों में देखा गया एक नजारा है।

गुम होती चिट्ठियां

आज 2025 में, जब दुनिया व्हाट्सऐप मैसेज और लगातार चलने वाले ईमेल थ्रेड्स पर चल रही है, तो यह हैरानी की बात नहीं कि हाथ से लिखी चिट्ठियों की आदत और जरूरत, दोनों ही, धीरे-धीरे बीते समय की बात बनती जा रही हैं। लेकिन एक दौर था, जब चिट्ठियां शहरों के बीच भावनाओं का पुल बनाती थीं और डाकिये का इंतजार एक खास उत्सुकता से भरा होता था।

चिट्ठियों का गजब का रहा है इतिहास

भारत की सबसे पुरानी डाक प्रणालियों में से एक की शुरुआत मौर्य साम्राज्य के समय, सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य (लगभग 321-297 ईसा पूर्व) के शासनकाल में हुई थी। इतिहासकार बताते हैं कि उस समय संदेश भेजने के लिए अक्सर कबूतरों का इस्तेमाल किया जाता था। यह तरीका इतने बड़े साम्राज्य में एक भरोसेमंद संचार नेटवर्क साबित हुआ। चौंकाने वाली बात यह है कि कबूतर डाक प्रणाली कई सदियों तक इस्तेमाल में रही। यहां तक कि अप्रैल 1948 में, प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने भी संबलपुर से कटक तक एक जनसभा की जानकारी भेजने के लिए कबूतर का सहारा लिया था। यह सेवा मार्च 2008 तक जारी रही, जब ओडिशा ने अपनी आखिरी कबूतर डाक सेवा आधिकारिक रूप से बंद कर दी।

जब कबूतर थे डाकिया

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