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बिलों को मंजूरी देने के लिए राज्यपाल-राष्ट्रपति के लिए कोई टाइमलाइन नहीं: सुप्रीम कोर्ट

Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (20 नवंबर) को बड़ा फैसला देते हुए कहा कि राज्य विधानसभाओं में पारित विधेयकों को मंजूरी देने के संबंध में राज्यपाल एवं राष्ट्रपति के लिए कोई समयसीमा तय नहीं की जा सकती। शीर्ष अदालत ने कहा कि न्यायपालिका भी उन्हें मान्य स्वीकृति नहीं दे सकती

Akhilesh Nath Tripathiअपडेटेड Nov 20, 2025 पर 3:17 PM
बिलों को मंजूरी देने के लिए राज्यपाल-राष्ट्रपति के लिए कोई टाइमलाइन नहीं: सुप्रीम कोर्ट
Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्यपाल के पास बिल को हमेशा के लिए रोकने का कोई अधिकार नहीं है

Supreme Court News: सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की संविधान पीठ ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के भेजे गए प्रेसिडेंशियल रेफरेंस पर गुरुवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कहा कि राज्य विधानसभाओं में पारित विधेयकों को मंजूरी देने के संबंध में राज्यपाल एवं राष्ट्रपति के लिए कोई समयसीमा तय नहीं की जा सकती। शीर्ष अदालत ने कहा कि न्यायपालिका भी उन्हें मान्य स्वीकृति नहीं दे सकती। हालांकि, कोर्ट ने साफ कहा कि राज्यपाल विधानसभा से पास हुए बिलों को अनंत काल तक अपने पास नहीं लटका सकते। ऐसा करना संघीय ढांचे को गहरी चोट पहुंचाता है। सात ही जनता द्वारा चुनी हुई सरकार के कामकाज को पूरी तरह ठप कर देता है।

चीफ जस्टिस बी.आर. गवई की अगुवाई वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से कहा कि यदि राज्यपाल को आर्टिकल 200 (विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को मंजूरी देने की राज्यपाल की शक्ति) के तहत उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना विधेयकों को रोकने की अनुमति दी जाती है तो यह संघवाद के हित के खिलाफ होगा। यह फैसला सुनाने वाली पीठ में जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी एस नरसिम्हा और जस्टिस ए एस चंदुरकर भी शामिल थे।

पीटीआई के मुताबिक पीठ ने कहा, "हमें नहीं लगता कि राज्यपालों के पास राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों को रोके रखने की असीमित शक्ति है।" राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा संविधान के आर्टिकल 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट की राय मांगे जाने पर पीठ ने 'राष्ट्रपति के संदर्भ' के मामले में जवाब देते हुए कहा कि राज्यपालों के पास तीन विकल्प हैं।

अदालत ने कहा कि या तो वे विधेयकों को मंजूरी दें या पुनर्विचार के लिए भेजें या उन्हें राष्ट्रपति के पास भेजें। उसने कहा कि भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में राज्यपालों के लिए समय-सीमा तय करना संविधान द्वारा लचीलेपन के खिलाफ है। शीर्ष अदालत ने यह भी फैसला दिया कि आर्टिकल 200 के तहत राज्यपाल के अधिकारों का उपयोग न्यायिक समीक्षा के दायरे में नहीं आता।

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