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सोनम वांगचुक को लद्दाख से जोधपुर जेल क्यों भेजा गया? सरकारी सूत्रों ने बताया कारण

अधिकारियों का कहना है कि पहले भी जम्मू-कश्मीर और पंजाब में ऐसा देखा गया है कि अगर बड़े नेताओं या कट्टरपंथियों को स्थानीय जेल में रखा जाता है तो वे वहीं से प्रभाव डालते रहते हैं और लोगों को भड़काते हैं। इसलिए ऐसे लोगों को राजस्थान, मध्य प्रदेश या दिल्ली की जेलों में शिफ्ट किया जाता है ताकि उनका लोकल सपोर्ट सिस्टम टूटे और सुरक्षा पर सीधा नियंत्रण बना रहे

MoneyControl Newsअपडेटेड Sep 27, 2025 पर 5:57 PM
सोनम वांगचुक को लद्दाख से जोधपुर जेल क्यों भेजा गया? सरकारी सूत्रों ने बताया कारण
सोनम वांगचुक को लद्दाख से जोधपुर जेल क्यों भेजा गया? (FILE PHOTO)

लद्दाख के सामाजिक कार्यकर्ता सोनम वांगचुक को स्थानीय जेल से जोधपुर सेंट्रल जेल भेजना सरकार की एक सोच-समझी सुरक्षा रणनीति का हिस्सा है। इसका मकसद लद्दाख और जम्मू-कश्मीर जैसे संवेदनशील इलाकों में लोगों की बड़ी भीड़ जुटने और राजनीतिक अशांति को रोकना है। सूत्रों के मुताबिक, सरकार की यह रणनीति “अलगाव और नियंत्रण” पर आधारित है। यानी ऐसे नेताओं को उनके इलाके से दूर ले जाकर उनके समर्थकों से संपर्क तोड़ना और सुरक्षा पर सीधा नियंत्रण रखना। वांगचुक हाल ही में लद्दाख में छठी अनुसूची की मांग और पर्यावरण संरक्षण को लेकर बड़ी संख्या में लोगों को इकट्ठा कर चुके हैं। इसी वजह से उनकी गिरफ्तारी और उन्हें लद्दाख से बाहर भेजने को सरकार एक एहतियाती कदम मान रही है, ताकि विरोध-प्रदर्शन, बंद या पत्थरबाजी जैसी स्थितियां न पैदा हों।

अधिकारियों का कहना है कि पहले भी जम्मू-कश्मीर और पंजाब में ऐसा देखा गया है कि अगर बड़े नेताओं या कट्टरपंथियों को स्थानीय जेल में रखा जाता है तो वे वहीं से प्रभाव डालते रहते हैं और लोगों को भड़काते हैं। इसलिए ऐसे लोगों को राजस्थान, मध्य प्रदेश या दिल्ली की जेलों में शिफ्ट किया जाता है ताकि उनका लोकल सपोर्ट सिस्टम टूटे और सुरक्षा पर सीधा नियंत्रण बना रहे।

हालांकि वांगचुक पर न तो UAPA के तहत कोई केस है और न ही उन्हें हिंसक गतिविधियों के लिए जाना जाता है, लेकिन सरकार का मानना है कि उनकी लोकप्रियता और लद्दाख में जारी आंदोलन उन्हें वहां रखने को एक बड़ा खतरा बना सकती है।

यह नीति नई नहीं है। 2019 में अनुच्छेद 370 हटाने के बाद भी अलगाववादी नेताओं जैसे मसारत आलम को तिहाड़ जेल भेजा गया था। इसी तरह 2021 और 2023 में पंजाब के खालिस्तानी समर्थकों को भी स्थानीय जेलों से बाहर शिफ्ट किया गया था।

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