महाराष्ट्र चुनाव: CM फेस के सवाल पर शिंदे की तरफ इशारा, फडणवीस ने दिलाई आडवाणी की याद, संगठन है सबसे ऊपर
भारतीय राजनीति में जब भी बड़े संगठनकर्ता नेताओं की चर्चा होती है तो आडवाणी का नाम जरूर आता है। बात 1995 की है। उस वक्त मुंबई के ही शिवाजी पार्क में बीजेपी का पूर्ण अधिवेशन था। देशभर से बीजेपी के करीब एक लाख बीस हजार कार्यकर्ता और नेता मुंबई में जुटे थे। यह बैठक लोकसभा चुनाव से पहले हुई थी
महाराष्ट्र चुनाव: CM फेस के सवाल पर शिंदे की तरफ इशारा
महाराष्ट्र की राजनीति बीते पांच साल के दौरान ऐसी घूम गई है कि इस बार विधानसभा चुनाव के पहले CM फेस को लेकर खूब बहस हो रही है। विपक्ष में ये बहस ज्यादा तेज है तो सत्ताधारी गठबंधन में भी CM फेस को लेकर अटकलें और चर्चाएं चलती रहती हैं। ऐसी ही चर्चा उस वक्त भी उठी जब हाल में सत्ताधारी महायुति सरकार अपना रिपोर्ट कार्ड जारी कर रही थी। इस कार्यक्रम में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के साथ दोनों डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार मौजूद थे। कार्यक्रम में देवेंद्र फडणवीस से पूछा गया कि महायुति का CM फेस कौन होगा? फडणवीस ने इस पर बिना नाम लिए कहा कि हमारे मुख्यमंत्री तो यहां बैठे हैं। उनका इशारा एकनाथ शिंदे की तरफ था।
शरद पवार को फडणवीस की चुनौती
फडणवीस ने शरद पवार को चुनौती भी दी कि वो महाविकास अघाड़ी (MVA) का सीएम फेस घोषित करें। हालांकि भारतीय जनता पार्टी के नियमों के मुताबिक मुख्यमंत्री के पद को लेकर फैसला करने वाले नेता देवेंद्र फडणवीस नहीं हैं। इस पर फैसला चुनावी नतीजों के बाद विधायक मंडल और पार्टी टॉप लीडरशिप करता है, अगर जीत हुई तो। लेकिन फडणवीस ने अपनी इस राजनीतिक प्रतिक्रिया के साथ विपक्ष में चल रही 'अंदरूनी लड़ाई' पर बढ़त लेने की कोशिश की।
महाराष्ट्र में राजनीतिक जोड़-तोड़
महाराष्ट्र की राजनीति को समझने वाले यह जानते हैं कि राज्य में बीते वर्षों में हुई राजनीतिक जोड़-तोड़ की राजनीति में फडणवीस मास्टर खिलाड़ी रहे हैं। हालांकि कभी इसे खुलकर स्वीकार नहीं किया गया। 2019 में तो अजित पवार को अपने साथ शपथ दिलाकर उन्होंने पूरे विपक्षी खेमे से लेकर मीडिया तक को हैरानी में डाल दिया था। हालांकि बाद में अजित पवार शरद पवार के पास वापस भी लौट गए थे। लेकिन वो फिर करीब साढ़े तीन साल बाद बीजेपी के साथ आ गए और पहले से ज्यादा ताकत के साथ। कहते हैं कि अजित पवार को बीजेपी के साथ लाने में देवेंद्र फडणवीस ने अहम भूमिका निभाई। दरअसल विपक्षी नेताओं के साथ भी बेहतर संबंध फडणवीस की ताकत है।
डिप्टी सीएम बनकर कार्यकर्ताओं को संदेश
यही नहीं 2022 में जब एकनाथ शिंदे शिवसेना से अलग हुए और बीजेपी से कम विधायकों के बावजूद मुख्यमंत्री बनाए गए तब भी देवेंद्र फडणवीस ने डिप्टी सीएम का पद लिया। फडणवीस ने उस वक्त भी बीजेपी संगठन और कार्यकर्ताओं के बीच एक संदेश देने की कोशिश की कि पार्टी को मजबूत करने के लिए पद में थोड़ा फेरबदल हो सकता है। मुख्य मकसद यह होना चाहिए कि संगठन सर्वोपरि हो और टॉप लीडरशिप के निर्णय को माना जाए।
फडणवीस ने यह सबकुछ 2014 से 2019 तक लगातार महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बने रहने के बाद किया। यही नहीं इस बार के लोकसभा चुनाव में जब भारतीय जनता पार्टी का महाराष्ट्र में प्रदर्शन खराब हुआ, तब देवेंद्र फडणवीस ने आगे बढ़कर इस्तीफे की पेशकश की थी। उन्होंने विधानसभा चुनाव में पार्टी को मजबूत करने के लिए जमीन पर काम करने की बात कही थी।
संकेतों का महत्व समझते हैं फडणवीस
कुल मिलाकर बीते दस सालों के दौरान देवेंद्र फडणवीस कई बार संगठन के लिए खुद को 'दो कदम पीछे' रखने से नहीं हिचके हैं। भारतीय राजनीति में संकेतों का बड़ा महत्व होता है, फडणवीस इस बात को बेहतर तरीके समझते हैं। यही कारण है कि मुंबई में महायुति सरकार का रिपोर्ट कार्ड जारी करते वक्त उन्होंने सीएम फेस के रूप में एकनाथ शिंदे की तरफ इशारा कर दिया। फडणवीस जानते हैं कि इन सब बातों पर निर्णय चुनाव के बाद ही होना है, लेकिन चुनाव से पहले कोई भी बात गठबंधन के भीतर सिर्फ विवाद पैदा करेगी।
जब आडवाणी ने आगे किया था अटल का नाम
संभवत: खुद फडणवीस की यादों से भी यह बात ओझल हो गई हो, लेकिन भारतीय जनता पार्टी के दिग्गज नेता और देश के पूर्व उपप्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने भी मुंबई में ही एक बड़ा निर्णय लिया था। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ आडवाणी की लंबी राजनीतिक यात्रा पर विनय सीतापति द्वारा लिखी गई किताब 'जुगलबंदी' में इस बात का जिक्र है।
भारतीय राजनीति में जब भी बड़े संगठनकर्ता नेताओं की चर्चा होती है तो आडवाणी का नाम जरूर आता है। बात 1995 की है। उस वक्त मुंबई के ही शिवाजी पार्क में बीजेपी का पूर्ण अधिवेशन था। देशभर से बीजेपी के करीब एक लाख बीस हजार कार्यकर्ता और नेता मुंबई में जुटे थे। यह बैठक लोकसभा चुनाव से पहले हुई थी। आडवाणी करीब एक दशक से पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे और इस दौरान उन्होंने पार्टी को आक्रामक छवि का बना दिया था। इस बैठक में माना जा रहा था कि प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए पार्टी अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी के नाम की घोषणा हो सकती है। लेकिन आडवाणी ने मंच से अटल बिहारी वाजपेयी का नाम घोषित कर सबको चौंका दिया था।
सीतापति अपनी किताब में लिखते हैं कि उस वक्त आडवाणी की पार्टी पर पकड़ इतनी मजबूत थी कि उनके नाम की घोषणा से कोई विवाद भी नहीं होता। लेकिन आडवाणी ने ऐसा नहीं किया। इसके बाद अटल बिहारी तीन बार अलग-अलग समय के लिए भारत के प्रधानमंत्री बने। यह लालकृष्ण आडवाणी के बेहतरीन संगठनकर्ता होने का नमूना था।
फूंक-फूंक कर कदम रख रहे फडणवीस
देवेंद्र फडणवीस के निर्णय कुछ-कुछ आडवाणी के फैसले की तरह हैं। हालांकि इससे यह बिल्कुल नहीं कहा जा सकता कि देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री नहीं बनना चाहते। राजनीति में सभी नेता सर्वोच्च पद तक पहुंचने की तमन्ना रखते हैं और यह स्वाभाविक भी है। फडणवीस तो राज्य के मुख्यमंत्री रह भी चुके हैं। लेकिन वह वक्त की नजाकत को समझ रहे हैं। वह जानते हैं कि सीएम फेस को लेकर विपक्ष एकमत नहीं है, ऐसे में अगर सत्ता पक्ष के भीतर भी ऐसा ही दिखा, तो विधानसभा चुनाव में उनकी लड़ाई कमजोर पड़ जाएगी। वह जानते हैं कि महाराष्ट्र की चुनावी हार बीजेपी को लेकर देश में पूरा नैरेटिव बदल सकती है। हरियाणा चुनाव के बाद बना माहौल पलट सकता है। वह जानते हैं कि मुख्यमंत्री पद के लिए बातचीत बैठकों में तय होती है, इसके सड़क पर लड़ाई नहीं लड़ी जाती। इसलिए एक परिपक्व राजनेता की तरह फडणवीस फूंक-फूंक कर कदम रख रहे हैं।