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Mahakumbh 2025: महाकुंभ मेले में त्रिवेणी संगम पर ही क्यों होता है शाही स्नान? जानें इसका महत्व

Mahakumbh Mela 2025: साल 2025 में उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ मेला लगने वाला है। इसके लिए योगी सरकार ने बड़े पैमाने पर तैयारी की है। महाकुंभ मेला 13 जनवरी 2025 को पौष पूर्णिमा के दिन से शुरू होगा। महाकुंभ मेले में शाही स्नान का बहुत महत्व होता है। मेले में पहला स्नान पौष पूर्णिमा के दिन होगा

MoneyControl Newsअपडेटेड Dec 16, 2024 पर 11:36 AM
Mahakumbh 2025: महाकुंभ मेले में त्रिवेणी संगम पर ही क्यों होता है शाही स्नान?  जानें इसका महत्व
Mahakumbh Mela 2025: महाकुंभ मेला 12 साल के बाद लगता है। इस मेले में बड़ी संख्या में साधु संत शामिल होते हैं।

साल 2025 में महाकुंभ मेला प्रयागराज में लगने वाला है। यह महाकुंभ मेला 12 साल में एक बार लगता है। गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम स्थल पर लगने वाले इस महाकुंभ मेले में दुनियाभर से करोड़ों श्रद्धालु आते हैं। त्रिवेणी संगम में तीन नदियां गंगा, यमुना और सरस्वती आपस में मिलती हैं। इन तीनों नदियों का मिलन प्रयागराज के संगम में होता है। प्रयागराज एक तीर्थस्थल है। यहीं पर शाही स्नान होता है। इस महापर्व का साधु-संत बेसब्री से इंतजार करते हैं। इस बार महाकुंभ की शुरुआत 13 जनवरी से हो रही है। वहीं, इसका समापन 26 फरवरी को होगा।

हिंदू संस्कृति में गंगा और यमुना के बाद सबसे अधिक महत्व सरस्वती को दिया गया है। हिंदू धर्म में माना गया है कि जितने भी तीर्थस्थल हैं, वो नदियों के तट पर हैं। इसमें भी जहां तीन नदियां आपस में मिलती हैं। उस जगह का खास महत्व रहता है। प्रयागराज में तीनों नदियों के मिलने का नजारा देखा जा सकता है।

किसे कहते हैं शाही स्नान?

हिंदू धर्म के लिए प्रयागराज का संगम बेहद पवित्र माना जाता है। प्रयागराज में गंगा- यमुना और सरस्वती नदी में होता है। ऐसी धार्मिक मान्यता है कि महाकुंभ, कुंभ और अर्धकुंभ के दौरान त्रिवेणी संगम में स्नान करने से श्रद्धालुओं को मोक्ष मिलता है। इसके साथ ही पापों से छुटकारा मिलता है। महाकुंभ के दौरान शाही स्नान को महत्वपूर्ण माना गया है। शाही स्नान के लिए साधु और संत अधिक संख्या में स्नान करने के लिए पहुंचते हैं, जिससे उन्हें पुण्य मिलता है। महाकुंभ में साधु और संत का स्नान सम्मान के साथ कराया जाता है। इसी वजह से इसे शाही स्नान कहा जाता है। साधु और संत के बाद श्रद्धालु त्रिवेणी में स्नान करते हैं।

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