पुरी ने कहा, “आवासन और शहरी गरीबी उन्मूलन मंत्रालय के मुताबिक, अफोर्डेबल हाउसिंग का वर्णन प्रॉपर्टी साइज, प्राइस और खरीदार की आय के आधार पर किया गया है। उदाहरण के लिए, नॉन मेट्रो शहरों और कस्बों में 90 वर्ग मीटर तक, बड़े शहरों में 60 मीटर तक कारपेट एरिया वाला और दोनों में 45 लाख रुपये तक का वाला मकान या फ्लैट अफोर्डेबल हाउसिंग में आता है। दूसरी तरफ, सेंट्रल बैंक की परिभाषा बैंक द्वारा मकान बनाने या अपार्टमेंट खरीदने के लिए दिए गए लोन पर आधारित है। सबसे ज्यादा अहम बात यह है कि सरकार को सिटी-वाइज अफोर्डेपबल हाउसिंग बजट के भीतर घरों के मूल्य पर फिर से गंभीरता से विचार करना चाहिए।” पुरी कहते हैं, यूनिट के साइज के आधार पर परिभाषा ही है, लेकिन कीमत (45 लाख रुपये तक) निश्चित रूप से ज्यादातर शहरों के लिए व्यवहारिक नहीं है। मुंबई जैसे शहर के लिए 45 लाख रुपये का बजट खासा कम है, इसलिए इस लिमिट को बढ़ाकर 60-65 लाख किया जाना चाहिए। प्राइस रिवीजन से ज्यादा मकान अफोर्डेबल प्राइस टैग के दायरे में आ जाएंगे और इस प्रकार ज्यादा खरीदार आईटीसी के बिना 1 फीसदी की जीएसटी दर, सरकारी सब्सिडीज और होम लोन के इंटरेस्ट रिपेमेंट पर कुल 3.5 लाख रुपये का टैक्स डिडक्शन जैसे कई बेनिफिट लेने में सक्षम हो जाएंगे। पुरी ने कहा कि इससे ज्यादा खरीदार घर खरीदने के लिए आकर्षित होंगे।