अगले वित्त वर्ष 2023-24 में बैंकों के लिए नेट इंटेरेस्ट मार्जिन (NIM) के मोर्चे पर दिक्कतें बढ़ सकती हैं। वैश्विक रेटिंग एजेंसी Fitch Ratings के मुताबिक हाई लोन ग्रोथ को सपोर्ट करने के लिए बैंकों ने जमा दरों में बढ़ोतरी की है जिसके चलते अगले वित्त वर्ष में बैंकों के एनआईएम पर दबाव दिखेगा। फिच रेटिंग्स का मानना है कि वित्त वर्ष 2023-24 में भारतीय बैंकिंग सेक्टर का एनएआईएम 0.10 फीसदी गिरकर 3.45 फीसदी रह जाएगा। चालू वित्त वर्ष 2022-23 में यह 0.15 फीसदी बढ़कर 3.55 फीसदी पर पहुंच जाएगा। वित्त वर्ष 2017-2022 का औसत 3.1 फीसदी रहा है। हालांकि रेटिंग एजेंसी के इस अनुमान में एक रिस्क यह है कि डिपॉजिट ग्रोथ के मुकाबले अगर लोन की ग्रोथ अधिक रहती है तो एनआईएम मजबूत रह सकती है।
किन बातों से दिखेगा NIM पर दबाव
फिच रेटिंग्स के मुताबिक अगर बैंकों को आगे भी डिपॉजिट रेट्स में बढ़ोतरी के लिए बाध्य होना पड़ा और होलसेल फंडिंग करते हैं जिसकी लागत बढ़ रही है तो इसके एनआईएम पर अधिक दबाव दिख सकता है। ब्याज की दरें बढ़ने पर अगर उसी हिसाब से क्रेडिड डिमांड नहीं बढ़ती है और डिपॉजिट नहीं बढ़ता है तो एनआईएम को लेकर रिस्क है। वित्त वर्ष की पहली छमाही अप्रैल-सितंबर 2022 में बैंकिंग सेक्टर की औसतन लोन ग्रोथ 17.5 फीसदी पर पहुंच गई और यह रुझान अक्टूबर-दिसंबर 2022 में भी जारी रही। हालांकि पूरे वित्त वर्ष 2023 के लिए यह अनुमान 13 फीसदी है। एनआईएम की बात करें तो अप्रैल-दिसंबर 2022 में यह 3.5 फीसदी की दर से बढ़ा।
NIM में गिरावट का मुनाफे पर कितना असर
फिच रेटिंग्स ने एनआईएम में 0.15 फीसदी गिरावट के आसार जताया है लेकिन रेटिंग एजेंसी का यह भी मानना है कि नियर टर्म में इससे बैंकों के मुनाफे पर असर नहीं पड़ेगा। इसके अलावा एजेंसी का कहना है कि लोन की हाई ग्रोथ के चलते हाई फी इनकम और ट्रेजरी गेन्स के पटरी पर लौटने, इन दोनों बातों से वित्त वर्ष 2024 में फंडिंग कॉस्ट और हाई क्रेडिट कॉस्ट का दबाव कम होगा। इसके अलावा कैपिटलाइजेशन को सपोर्ट भी मिलेगा। वहीं दूसरी तरफ फिच रेटिंग्स के मुताबिक अगर मार्जिन 0.50 फीसदी गिर सकता है तो बैंकों की कमाई और मुनाफे पर दबाव दिख सकता है।
बैंकों के सामने क्या है चुनौतियां
बैंकिंग सेक्टर अनसिक्योर्ड पर्सनल लोन, क्रेडिट कार्ड और कंज्यूमर ड्यूरेबल लोन जैसे हाई-यील्ड सेग्मेंट पर फोकस कर रहा जिससे एनआईएम को बढ़ाने में मदद मिलेगी। वित्त वर्ष 2022 में बैंकिंग सेक्टर का लोन-टू-डिपॉजिट रेश्यो 71 फीसदी था जो दिसंबर 2022 के आखिरी में 75 फीसदी पर पहुंच गया। हालांकि बैंक ने ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है जिसके चलते फंड की लागत बढ़ी है। इसके अलावा बैंक के लोन बुक में अधिकतर कम यील्ड वाले सेग्मेंट्स जैसे कि हाउसिंग लोन, प्रोजेक्ट फाइनेंसिंग खासतौर से सड़कें, छोटे कारोबारियों को गारंटीड क्रेडिट में हैं। इसके चलते बैंकों के लिए फंडिंग कॉस्ट की चुनौतियां बनी हुई हैं।