Yes Bank AT1 bond : बंबई हाई कोर्ट ने यस बैंक के मार्च 2020 के 8,415 करोड़ रुपये एडीशनल टियर 1 (एटी1) बॉन्ड्स को बट्टे खाते में डालने के फैसले को खारिज कर दिया, लेकिन लेंडर को इस फैसले के खिलाफ अपील करने के लिए 6 हफ्ते का समय दिया है। इस स्थिति में यह आदेश यस बैंक के एटी1 बॉन्ड होल्डर्स के लिए अच्छी खबर है, जिनमें इंस्टीट्यूशंस और रिटेल इनवेस्टर्स शामिल हैं। ये बॉन्ड होल्डर्स पिछले तीन साल से कई मोर्चों पर कानूनी जंग लड़ रहे हैं।
AT1 बॉन्ड्स एक तरह की सिक्योरिटीज होती हैं जिनकी कोई मैच्योरिटी अवधि नहीं होती है। बैंक इन्हें बेसिल-3 नॉर्म्स को पूरा करने के उद्देश्य से पूंजी जुटाने के लिए इस्तेमाल करते हैं। ये बॉन्ड्स ज्यादा रिस्क और रिवार्ड की पेशकश करते हैं। इनमें ऑफर की गई 9-9.5 फीसदी की ब्याज दर, अन्य डेट इंस्ट्रुमेंट्स की तुलना में खासी ज्यादा थी। लेकिन कंपनी के नाकाम होने पर एटी2 बॉन्ड्स का पूरा रिस्क इनवेस्टर्स का होता है। जारीकर्ता इन बॉन्ड्स को बट्टे खाते में डाल सकता है।
Yes Bank के मामले में क्या हुआ?
यस बैंक ने फ्रॉड, वित्तीय अनियमितताओं और एनपीए से जूझते हुए मार्च 2020 में बेलआउट के तहत 8415 करोड़ रुपये के एटी1 बॉन्ड्स को राइट ऑफ कर दिया था यानी कि इसकी वैल्यू जीरो कर दी थी। रिकंस्ट्रक्शन स्कीम के तहत आरबीआई द्वारा नियुक्त एडमिनिस्ट्रेटर ने यह फैसला किया था। इसके खिलाफ बैंक के एटी1 बॉन्डहोल्डर्स कोर्ट चले गए।
यस बैंक के अधिकारियों पर गुमराह करने का आरोप
यह फैसला एटी1 बॉन्ड होल्डर्स के लिए बड़ा झटका था। उन्होंने कहा कि यस बैंक के अधिकारियों ने बॉन्ड में जोखिम को गलत तरीके से पेश किया और उन्हें ऊंचे रिटर्न और सेफ्टी के वादे पर फिक्स्ड डिपॉजिट होल्डर्स को 'सुपर एफडी' के रूप में बेच दिया।
यस बैंक के अधिकारियों ने इन बॉन्ड्स पर 9-9.5 फीसदी रिटर्न की पेशकश की और उन्हें इन इंस्ट्रुमेंट्स में मोटी धनराशि (कुछ मामलों में 1 करोड़ रुपये से 1.5 करोड़ रुपये) स्थानांतरित की गई।
रिटेल इनवेस्टर्स का आरोप है कि ऐसा इन बॉन्ड्स से जुड़े ऊंचे जोखिम को समझाए बिना किया गया था। विशेष रूप से उस प्रोविजन के बारे में नहीं बताया गया कि बैंक के फेल होने पर ये बॉन्ड समाप्त हो जाएंगे और पूंजी डूब जाएगी।
कोर्ट ने बट्टे खाते में डालने के फैसले को क्यों किया खारिज
कोर्ट ने इसके दो मुख्य कारण बताए हैं। कोर्ट ने यस बैंक के रिकंस्ट्रक्शन की फाइनल स्कीम में उस क्लॉज के नहीं होने का उल्लेख किया और कहा कि एडमिनिस्ट्रेशन ने अपने अधिकार का उल्लंघन किया है।
इसमें कहा गया है कि भले ही यस बैंक ड्राफ्ट रिकंस्ट्रक्शन स्कीम में AT1 बॉन्ड राइट डाउन करने का क्लॉज था, लेकिन यह सरकार द्वारा स्वीकृत फाइनल स्कीम नहीं था।
कोर्ट ने कहा, “ऐसा लगता है कि आपत्तियों पर विचार करने के बाद आरबीआई ने ड्राफ्ट स्कीम में बदलाव किया। उसने एटी-1 बॉन्ड्स को राइट डाउन करने के क्लॉज को डिलीट कर दिया।”
फाइनल स्कीम यस बैंक के एडमिनिस्ट्रेटर को एटी-1 बॉन्ड बट्टे खाते में डालने का अधिकार नहीं देती। उन्होंने अपने अधिकार का उल्लंघन किया है।
21 जनवरी को यस बैंक ने कहा कि वह इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट को चुनौती देगा। इसका मतलब है कि इनवेस्टर्स को अभी लंबी लड़ाई लड़नी पड़ेगी।