Karnataka Elections: कर्नाटक के बाद अब दिल्ली कितनी दूर? कांग्रेस के लिए कैसी स्ट्रैटेजी हो सकती है कारगर?
Karnataka Elections: कांग्रेस ने शानदार बहुमत के साथ कर्नाटक फतह कर लिया है। हालांकि दिल्ली कितनी दूर है, इस पर कुछ कहना अभी जल्दबाजी होगी। पहले भी ऐसा हुआ है कि राज्यों में शानदार प्रदर्शन करने के बावजूद लोकसभा में पार्टियां फिसड्डी साबित हुई हैं। ऐसे में यह जानना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस को यह जीत कैसे मिली है और इस जीत के मायने क्या हैं और आगे लोकसभा चुनावों के लिए क्या स्ट्रैटेजी कारगर हो सकती है
कर्नाटक की जीत में भारत जोड़ो यात्रा की क्या भूमिका है, इसे लेकर पार्टी के प्रवक्ता लोग राहुल गांधी के राज्य में दौरे का उदाहरण दे रहे हैं। राहुल गांधी ने दक्षिणी राज्यों यानी तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में 59 दिनों की यात्रा की जिसमें 21 दिन कर्नाटक में लगे थे और इस दौरान वह 557 किमी कर्नाटक में पैदल चले।
Karnataka Elections: कर्नाटक में कांग्रेस पूर्ण बहुमत से सरकार बनाने जा रही है। हालांकि दिल्ली अभी कितनी दूर है, इसके बारे में कुछ पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता है। कर्नाटक की जीत ने कांग्रेस का जोश बढ़ाया है लेकिन अगले साल लोकसभा चुनावों के लिए इसे अहम स्ट्रैटेजी बनानी होगी। करीब 20 साल पहले बीजेपी के गठबंधन नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस (NDA) ने 2003 में मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में शानदार जीत के बाद 2004 में समय से पहले लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने की कोशिश की। हालांकि राज्यों की जीत से उत्साहित एनडीए केंद्र में वापसी नहीं कर सकी। एनडीए में बीजेपी की सहयोगी तेलुगू देशम पार्टी और जनता दल (यूनाइटेड) की सीटें तो दोहरे अंकों में भी नहीं पहुंच सकीं।
ऐसा ही कई और राज्यों में हुआ है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी 2014 से बंपर बहुमत हासिल कर रही है लेकिन लोकसभा में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पा रही है। कर्नाटक की ही बात करें तो बीजेपी ने 2009 में इसे फतह किया था लेकिन केंद्र में सरकार कांग्रेस की अगुवाई वाले यूपीए के बनी। ऐसे में कांग्रेस के लिए अभी से कह देना कि दिल्ली अब दूर नहीं, जल्दबाजी होगी। हालांकि इस जीत ने मोराल बूस्टर का काम तो किया ही है।
पार्टी नेता Rahul Gandhi और Bharat Jodo Yatra को दे रहे श्रेय
कर्नाटक में जीत किसके दम पर मिली, इसे लेकर पार्टी नेताओं ने बिना देरी किए राहुल गांधी और उनकी भारत जोड़ो यात्रा को दिया। राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा पिछले साल 2022 में शुरू की थी और इसकी तहत दक्षिण से लेकर उत्तर तक के राज्यों की उन्होंने पदयात्रा की थी। कर्नाटक की जीत का श्रेय पार्टी के नेता इसे दे रहे हैं। वहीं पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया (75), ओबीसी कुरुबा समुदाय के नेता डीके शिवकुमार (60) और वोक्कालिंगा और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे (80) जैसे स्थानीय नेताओं की मेहनत को श्रेय नहीं दे रहे। इन तीनों नेताओं ने कर्नाटक में कांग्रेस के सफलता की कहानी लिखी लेकिन यह पार्टी के लिए आम परंपरा बन चुकी है कि सफलता के लिए गांधी परिवार को और असफलताओं के लिए स्थानीय नेताओं को जिम्मेदार ठहराया जाए।
कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे को मिली पहली बड़ी सफलता
पिछले साल अक्टूबर 2022 में मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के अध्यक्ष बने थे। इसके बाद कर्नाटक में उनके नेतृत्व में कांग्रेस ने शानदार जीत हासिल की है। कर्नाटक की जीत इसलिए भी खास है क्योंकि वह यहां 1999 से ही मुख्यमंत्री पद के दौड़ में थे लेकिन कभी सफल नहीं हो सके।
'भारत जोड़ो यात्रा' के दौरान 21 दिन कर्नाटक में थे राहुल गांधी
कर्नाटक की जीत में भारत जोड़ो यात्रा की क्या भूमिका है, इसे लेकर पार्टी के प्रवक्ता लोग राहुल गांधी के राज्य में दौरे का उदाहरण दे रहे हैं। राहुल गांधी ने दक्षिणी राज्यों यानी तमिलनाडु, केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में 59 दिनों की यात्रा की जिसमें 21 दिन कर्नाटक में लगे थे और इस दौरान वह 557 किमी कर्नाटक में पैदल चले। राहुल गांधी ने मैसूर में बारिश में भी भाषण दिया। इस यात्रा के दौरान ही उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और गुजरात में विधानसभा चुनाव हुए, जिसमें सिर्फ हिमाचल प्रदेश में ही कांग्रेस सरकार बनाने में सफल रही थी।
2018 में राजस्थान, छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में जीत हासिल करने के बाद से कांग्रेस किसी बड़े राज्य में जीत हासिल करने में नाकाम रही। इसके अलावा पार्टी नगदी की दिक्कतों से भी जूझ रही है। ऐसे में कर्नाटक मजबूत इकनॉमिक ग्रोथ वाले राज्य में जीत हासिल करने से अगले साल 2024 में लोकसभा की तैयारियों के लिए इसे मदद मिलेगी। 2022-23 में कर्नाटक की जीडीपी करीब 24 हजार करोड़ डॉलर की थी। 2014 और 2019 में बुरी हार और लगातार कई राज्यों के चुनावों में हार से विपक्षी पार्टियों के बीच कांग्रेस को लेकर भरोसा कमजोर हुआ।
हालांकि अब कर्नाटक की जीत से यह विपक्षी पार्टियों के बीच यह नेतृत्व का दावा कर सकेगी और 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के खिलाफ अहम धुरी बन सकती है। हालांकि विपक्षी पार्टियों के बीच कांग्रेस को अभी अपना दमखम इस साल के आगामी चुनावों में दिखाना होगा। इस साल राजस्थान, मध्य प्रदेश, तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और मिजोरम में विधानसभा चुनाव हैं। इसमें से कम से तीन राज्यों में कांग्रेस की भिड़ंत सीधे बीजेपी से है।
पिछले साल से कर्नाटक में हिजाब और हलाल का मुद्दा छाया हुआ है। हालांकि बीजेपी का हिंदुत्व कैंपेन कर्नाटक में सफल नहीं हो पाया। ऐसे में कांग्रेस को यह महसूस करना चाहिए कि महंगाई और बेरोजगारी जैसे अहम मुद्दे उसके अहम हथियार साबित हो सकते हैं। कांग्रेस अब यह धारणा बनाने की कोशिश करेगी कि यह बहुमत केंद्र में मोदी के प्रदर्शन पर जनरुझान हैं, इससे राहुल गांधी केंद्रीय भूमिका में आ जाएंगे।
हालांकि सिर्फ कर्नाटक के आर्थिक स्रोत के सहारे कांग्रेस खुद को केंद्र की सत्ता में नहीं ला पाएगी। इसके लिए पार्टी को रिसोर्सेज के साथ-साथ समर्पित पार्टी कैडर्स और बूथ वर्कर्स चाहिए। देश के 19 राज्यों की 209 लोकसभा सीटों पर कांग्रेस सीधे लड़ाई में है। ऐसे में अगर पार्टी इनमें से प्रत्येक राज्य में सिद्धरमैया, शिनकुमार और खड़गे जैसे स्थानीय नेता तैयाप करे तो 2024 के लोकसभा चुनावों में पार्टी के लिए राजनीतिक हवा बदल सकती है।
(आर्टिकल: इफ्तिखार गिलानी, जर्नलिस्ट, अभी तुर्किए के अंकारा में। यह लेखक के अपने व्यक्तिगत विचार हैं और यह मनीकंट्रोल के विचारों का प्रतिनिधित्व नहीं करता है।)