सुरेंद्र किशोर
सुरेंद्र किशोर
डॉक्टर सी.वी. रमन को जब नोबल पुरस्कार मिला तो उन्होंने पुरस्कार की राशि से 300 हीरे खरीदे थे। ऐसा नहीं था कि उन्हें हीरों का शौक था। बल्कि उन्होंने ने उन हीरों पर रिसर्च कर कई नए सिद्धांत दिए। उनकी सबसे अहम खोज विकिरण प्रभाव (Radiation effect) है जो रमन प्रभाव के नाम से मशहूर हुआ। इस खोज के लिए उन्हें सन 1930 में नोबल पुरस्कार मिला था। अब तक इस देश की 9 हस्तियों को नोबल पुरस्कार मिल चुका है।
बचपन से ही मेधावी छात्र रमन ने सात साल की मेहनत से यह खोज की थी। वे इतने आत्म विश्वासी थे कि उन्होंने कलकत्ता यूनिवर्सिटी के कुलपति आशुतोष मुखर्जी से पहले ही कह दिया था कि आप मुझे सुविधाएं दीजिए, मैं पांच साल के भीतर नोबल पुरस्कार जरूर हासल कर लूंगा। और ऐसा ही हुआ। आशुतोष मुखर्जी भारतीय जनसंघ के संस्थापक श्यामाप्रसाद मुखर्जी के पिता थे।
7 नवंबर, 1888 को मद्रास के तिरुचिल्लापली में रमन का जन्म हुआ था। उनके पिता विज्ञान शिक्षक थे। 21 नवंबर 1970 को रमन का निधन हो गया। पर इस बीच उन्होंने अनेक उपलब्धियां हासिल कीं। सन 1954 में उन्हें ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया गया।
बचपन से ही रमन का फिजिक्स के प्रति गहरा लगाव था। वह परिवार के साथ जब विशाखापतनम गये, तब उनकी उम्र मात्र 14 साल की थी। उन्होंने वहां कालेज की शिक्षा हासिल की। बाद में उन्होंने मद्रास के प्रेसिडेंसी कालेज में दाखिला लिया। स्नातकोत्तर परीक्षा में उन्हें स्वर्ण पदक हासिल हुआ। वह विदेश जाना चाहते थे लेकिन उनकी सेहत ने उनका साथ नहीं दिया।
वह कलकत्ता के केंद्रीय वित्त विभाग में उप महालेखापाल के पद पर नियुक्त हुए। पर बाद में वह कलकत्ता में ही Indian Association for the Cultivation of Science (IACS) की प्रयोगशाला में रिसर्च करने लगे। वह विज्ञान की खोज को ही अपना धर्म मानते थे।
डा.रमन की सबसे महत्वपूर्ण खोज विकिरण प्रभाव था। ‘Raman effect’ यह साबित करता है कि जब श्वेत प्रकाश की किरणें किसी पारदर्शी वस्तु के अणु को भेदती हैं तो प्रसारित दीप्ति अनेक ऐसी नई रेखाएं उत्पन्न करती हैं जिन्हें साधारण प्रकाश में नहीं देखा जा सकता है। इस स्थापना ने फिजिक्स को नई दिशा दी। विशेषज्ञों के अनुसार इस आविष्कार से दुनिया को बड़ा लाभ मिला। Raman effect उनके सात वर्षों के प्रयास का फल था।
हीरों में सर सी.वी.रमन को काफी दिलचस्पी थी। लेकिन उनकी यह दिलचस्पी अन्य कारणों से नहीं, बल्कि वैज्ञानिक कारणों से थी। डॉक्टर रमन मानते थे कि रंगावलि के अध्ययन की दृष्टि से हीरा एक महत्वपूर्ण ठोस पदार्थ है। हीरों पर अनुसंधान करके डॉक्टर रमन ने कई नये सिद्धांत दिए। उन्होंने यह संभावना भी जताई कि मानव भी हीरा बना सकता है। पहले यह माना जाता था कि हीरा एक अविभाजित रासायनिक इकाई है या बड़े आकार का परमाणु है।पर सन 1944 में डॉक्टर रमन ने इस मत का खंडन किया।
हीरों के प्रति अपने लगाव और उसके शोध से जो जानकारी उन्हें हासिल हुई थी, उसको लेकर डॉक्टर रमन उत्साहित रहते थे। इस बीच इरानी सांस्कृतिक प्रतिनिधि मंडल भारत आया हुआ था। उसके नेता अली असगर हिकमत से डॉक्टर रमन ने मजाक में कहा था कि यदि मुझे पैसे बनाने का चस्का लग जाए तो मैं अपनी प्रयोगशाला में बैठकर सिर्फ सिर्फ हीरे बनाउंगा। हालांकि मैं कह नहीं सकता कि दुनिया इसके लिए मुझे बधाई देगी या कोसेगी।
डॉक्टर रमन कहते थे कि साहित्य, चित्र कला, संगीत और स्थापत्य कला की तरह विज्ञान भी मानव की आत्माभिव्यक्ति का ही एक माध्यम है। अन्य कलाओं की तरह ही वैज्ञानिक अनुसंधान की प्रेरणा का आदिस्त्रोत भी प्रकृति ही है। हालांकि विज्ञान की प्रगति के प्रति भारत सरकार के उपेक्षा-भाव से डॉक्टर रमन बहुत खिन्न रहते थे। वह मानते थे कि लालफीताशाही विज्ञान की उन्नति में सबसे बड़ी बाधा है।
डॉक्टर रमन का सपना था कि भारत विज्ञान की दृष्टि से सबसे विकसित देशों की श्रेणी में आ जाए।उनका यह सपना पूरा नहीं हो सका। उनका दूसरा सपना यह था कि वह आइंस्टाइन और न्यूटन की ऊंचाई तक पहुंचना चाहते थे। डॉक्टर रमन के बारे में यह बात कम ही लोग जानते हैं कि उन्होंने पियानो, वायलीन, वीणा, मृदंग और तानपुरा बजाने का भी अभ्यास किया था।
वाद्यों और ध्वनि तरंगों के अध्ययन में उनकी विशेष रूचि थी। उन्होंने सन् 1921 में भारतीय विज्ञान कांग्रेस की स्थापना की। उसी साल वह पहली बार विदेश गये थे। उन्होंने आक्सफोर्ड में ब्रिटिश साम्राज्य के विश्वविद्यालय कांग्रेस में कलकत्ता विश्व विदयालय का प्रतिनिधित्व किया था। उन दिनों यात्राएं समुद्री मार्ग से होती थीं। उस यात्रा दौरान डॉक्टर रमन ने जहाज की छत पर खड़े होकर समुद्र और आकाश को जी भर कर देखा। वह विचारमग्न हो गये कि ये नीले क्यों हैं?
इस तरह रंग और प्रकाश के तत्वों के प्रति उनकी जिज्ञाशा बढ़ती चली गई। उन्होंने फूलों के रंगों का विशेष रूप से गहन अध्ययन किया था। देश -विदेश से डॉक्टर रमन को अनेक सम्मान मिले थे। सन् 1928 में वह रॉयल सोसाइटी के फेलो चुने गये। वह कई देशों के वैज्ञानिक अकादमी के सदस्य भी थे। फ्रेंकलिन इंस्टीटयूट ऑफ फिलाडेल्फिया का सर्वोच्च पुरस्कार रमन को मिला था। उसका नाम फ्रेंकलीन पदक था। यह उन्हें सन 1941 में मिला।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक मामलों के जानकार हैं)
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