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इंदिरा और राजीव गांधी से विरासत में नारे गढ़ने और चुनावी फायदा लेने का हुनर राहुल गांधी नहीं सीख पाए

इंदिरा गांधी ने साठ के दशक में बैंकों के राष्ट्रीयकरण करके और राजवाड़ों के प्रिवी पर्स समाप्त करके गरीबों का दिल जीता था, अस्सी के दशक में राजीव गांधी ने कांग्रेस महा सचिव के रूप में ही ऐसे कुछ काम केंद्र की सत्ताधारी पार्टी से करवा दिए थे जिनसे उन्हें देश ने तत्काल ‘मिस्टर क्लिन ’ मान लिया लेकिन राहुल गांधी ऐसा कुछ करने में नाकाम रहे

Surendra Kishoreअपडेटेड Mar 13, 2023 पर 7:26 AM
इंदिरा और राजीव गांधी से विरासत में नारे गढ़ने और चुनावी फायदा लेने का हुनर राहुल गांधी नहीं सीख पाए
कांग्रेस के खिलाफ जनता की मानसिकता को न तो राहुल पहचान सके और न ही उसे बदलने के उपाय कर सके

नारे गढ़ने और उसका चुनावी लाभ उठाने की तरकीब राहुल गांधी ने न तो इंदिरा गांधी से सीखी और न राजीव गांधी से। मनमोहन सिंह जब प्रधानमंत्री थे तब राहुल गांधी ने सार्वजनिक रूप से अध्यादेश की कॉपी फाड़ कर मिस्टर क्लीन की छवि पेश करने की कोशिश जरूर की थी। लेकिन वे उसे स्थायी भाव नहीं बना सके। याद रहे कि सजायाफ्ता जन प्रतिनिधियों की सदन की सदस्यता बचाने के लिए वह अध्यादेश आया था।

इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने तरह -तरह के उपायों से कभी अपना और अपने दल का राजनीतिक कद बढ़ाया था। चुनावों में समय-समय पर कांग्रेस को भारी जीत दिलवाई थी। पर, राहुल गांधी अपने पिता और दादी से भी कुछ नहीं सीख सके। नतीजा ये रहा कि चुनावों में आम तौर पर कांग्रेस और राहुल फिस्सडी ही साबित होते रहे हैं। इक्के-दुक्के अपवादों से पूरे देश की राजनीति नहीं चलती।

भ्रष्टाचार के आरोप झेल रही कांग्रेस के खिलाफ जनता की मानसिकता को न तो राहुल पहचान सके और न ही उसे बदलने के उपाय कर सके। जबकि कभी- कभी वे मेहनत भी करते रहे।हाल में उन्होंने लंबी ‘भारत जोड़ो यात्रा’ तक की। कांग्रेस का जन समर्थन 1989 से घटना शुरू हुआ था। वह अब भी जारी है। उसके घटते जाने के ठोस कारण रहे हैं। जब तक उन कारणों को दूर नहीं किया जाएगा, तब तक पार्टी का पुनरुत्थान कैसे संभव है? लेकिन, राहुल को तो पतन के कारण तक नहीं मालूम।

हाल में कुछ प्रादेशिक चुनाव हुए। कांग्रेस के लिए परिणाम अच्छे नहीं रहे। इन चुनाव परिणामों का असर अगले लोक सभा चुनाव पर भी पड़ ही सकता है। कई बार राहुल गांधी दलितों के घर जरूर गये। पर ‘खाली हाथ। उनके लिए ठोस किया क्या? कांग्रेस की सरकार अल्पसंख्यकों के लिए घोषणाएं करती रही।पर,वह सरजमीन पर नहीं उतर सका। वैसे भी अल्पसंख्यक मतदातागण अब चुन-चुन कर दलों को वोट देने लगे हैं। जो जहां BJP को हराने की स्थिति में होता है,उसे ही वहां अधिकतर अल्पसंख्यकों के वोट मिलते हैं। उसके अनुसार कांग्रेस को अपनी रणनीति बदलनी चाहिए थी।

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