सेबी के एक नियम के चलते माइक्रो-कैप शेयरों में आज बिकवाली का भारी दबाव दिख रहा है। बीएसई और एनएसई ने 500 करोड़ रुपये कम मार्केट कैप वाली कंपनियों पर निगरानी का दायरा बढ़ा लिया है जिसका झटका शेयरों पर दिख रहा है। एक्सचेंजों ने आज 5 जून से स्मॉल कैप शेयरों में भारी उतार-चढ़ाव को थामने के लिए ही निगरानी बढ़ा दिया है। एनालिस्ट्स के मुताबिक बाजार नियामक सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (SEBI) ने स्मॉल और माइक्रो-कैप कंपनियों में मौजूदा तेजी के बीच यह सुनिश्चित करने के लिए ऐसा नियम लाया है ताकि प्राइस मैनिपुलेशन के चलते खुदरा निवेशक अपने पैसे न गंवाएं।
2000 शेयरों का मार्केट कैप 500 करोड़ रुपये से कम
सोमवार को करीब 599 कंपनियां में गिरावट दिख रही है जिसमें से करीब 60 शेयर तो 5 फीसदी टूटकर लोअर सर्किट पर आ गए। करीब 119 शेयरों में कोई बदलाव नहीं हुआ और 1,130 शेयर ग्रीन जोन में हैं। गिरावट वाले शेयरों की बात करें तो सबसे अधिक इंडोविंड एनर्जी में करीब 23 फीसदी की गिरावट आई, जबकि साह पॉलिमर में करीब 16 फीसदी की गिरावट आई। इन दोनों शेयरों में 28 मार्च और 2 जून के बीच 25 फीसदी से अधिक की तेजी आई थी लेकिन अब सेबी के नियम के चलते आज ये धराशाई हो गए। बीएसई पर 2 हजार से अधिक शेयरों का मार्केट कैप 500 करोड़ रुपये से कम है। इसमें से करीब 1600 शेयर 28 मार्च से 2 जून के बीच 10-700 फीसदी तक उछल गए थे। वहीं करीब 400 शेयरों ने इस अवधि में निगेटिव रिटर्न दिया है।
इन शेयरों को SEBI के फैसले से रखा गया है बाहर
बीएसई और एनएसई ने शुक्रवार को अलग-अलग सर्कुलर में सेबी के इस नियम के बारे में बताया था। सर्कुलर के मुताबिक सेबी और एक्सचेंजों की ज्वाइंट मीटिंग में मेनबोर्ड की 500 करोड़ रुपये से कम मार्केट कैप वाली कंपनियों को ईएसएम फ्रेमवर्क में रखने का फैसला किया गया। हालांकि इस फैसले से सरकारी कंपनियों, पीएसयू बैंकों या उन शेयरों को जो डेरिवेटिव का हिस्सा हैं, उन्हें दूर रखा गया है। इस फ्रेमवर्क में शेयरों को हाई-लो प्राइस वैरिएशन और क्लोज-टू-क्लोज प्राइस वैरिएशन जैसे पैरामीटर्स के आधार पर शामिल किया गया है। इन शेयरों को हर तीन महीने पर रिव्यू किया जाएगा और फिर वोलेटिलिटी और प्राइस बैंड क्राइटेरिया जैसे पैरामीटर्स को पूरा करने के बाद ही इस इस फ्रेमवर्क से ये बाहर आ पाएंगे।
एक्सपर्ट्स का क्या कहना है
इस नियम को लेकर एयूएम कैपिटल मार्केट के नेशनल हेड (वेल्थ) मुकेश कोचर का कहना है कि यह निवेशकों के हित के लिए बहुत जरूरी कदम है क्योंकि खुदरा निवेशक बाजार की तेजी के बीच इन पेनी स्टॉक्स में निवेश कर फंस जाते हैं। वहीं एक और ब्रोकरेज जियोजीत फाइनेंशियल सर्विसेज के चीफ इनवेस्टमेंट स्ट्रेटजिस्ट वीके विजयकुमार का कहना है कि कई माइक्रो कैप्स में हाइपरएक्टिविटी दिख रही है जिसमें फ्लोटिंग स्टॉक कम है तो इन्हें आसानी से मैनिपुलेट किया जा सकता है। ऐसे में वीके के मुताबिक सेबी का फैसला बेहतर है क्योंकि इससे मैनिपुलेशन को रोकने में मदद मिलेगी।