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Rakesh Jhunjhunwala Story: राकेश झुनझुनवाला का जादू, शोले और टाइटन, तीनों में कनेक्शन की दिलचस्प कहानी

Rakesh Jhunjhunwala Story: शोले 15 अगस्त, 1975 को रिलीज हुई थी। रमेश सिप्पी दोबारा ऐसी फिल्म नहीं बना सकें। शोले की कमाई आज के रुपये में 3,500 करोड़ होती है। आज किसी एक फिल्म के लिए इतनी कमाई काफी ज्यादा लग सकती है। यह शोले का कमाल था

Edited By: Rakesh Ranjanअपडेटेड Aug 18, 2025 पर 11:37 AM
Rakesh Jhunjhunwala Story: राकेश झुनझुनवाला का जादू, शोले और टाइटन, तीनों में कनेक्शन की दिलचस्प कहानी
राकेश की एंट्री मार्केट में 1980 के दशक के मध्य में हुई। तब इंडिया की जीडीपी 150 अरब डॉलर थी।

इंडियन इनवेस्टर्स की प्रॉब्लम कुछ-कुछ रमेश सिप्पी जैसी है। सिप्पी ने शोले बनाई। यह फिल्म 15 अगस्त, 1975 को रिलीज हुई थी। मैंने इसे 16 अगस्त को देखी थी। ब्लैक मार्केट से अपने पड़ोस की अनिल टॉकीज की शोले का टिकट खरीदा था। देखने के बाद मेरे दिमाग ऐसी 11 बातें चल रही थी और मुझे लग रहा था कि शायद ऐसा कभी दोबारा नहीं होगा। मेरी बात सही साबित हुई। सिप्पी दूसरी शोले नहीं बना सके। ऐसा नहीं है कि उन्होंने कोशिश नहीं की। यह भी नहीं है कि फिल्म बनाने की उनकी काबिलियत पर किसी तरह का असर पड़ा।

इंडियन इनवेस्टर्स के साथ शोले (Sholay) वाली प्रॉब्लम है। Rakesh Jhunjhunwala उनके इकलौते बेंचमार्क बन गए हैं। यह ठीक नहीं है। आज इनवेस्टर्स को यह समझने की जरूरत है कि 2004 के बाद राकेश के साथ क्या हुआ था। उन्हें उन ऊंची लहरों को समझने की जरूरत है, जिन्होंने राकेश के मुकद्दर को आसमान में पहुंचा दिया। उन्हें यह समझने की जरूरत है कि ऐसी लहरों के पीछे ईश्वर का हाथ होता है। इसके बिना जिंदगी में औसत से थोड़ा ज्यादा रिटर्न मिल पाता है।

राकेश की एंट्री मार्केट में 1980 के दशक के मध्य में हुई। तब इंडिया की जीडीपी 150 अरब डॉलर थी। तब हर्षद ने यह सही कहा था कि इंडियन मार्केट्स की वैल्यूएशन कम है। एक दशक बाद राकेश ने उसी लाइन को अलग शब्दों में दोहराई। उन्होंने कहा कि इंडिया बगैर जूतों के दौड़ रहा है। यह उसी तरह से था जैसा अमिताभ बच्चन के डायलॉग बोलने का अंदाज दिलीप कुमार जैसा था। 80, 90 और उसके बाद के दशकों में कुछ दूसरी चीजें भी चल रही थीं।

ग्लोबलाइजेशन शुरू हो चुका था। हालांकि, तब शायद ही किसी को यकीन था कि यह जारी रहेगा। लेकिन, आज चीजें तब के अनुमान के उलट हैं। अब राकेश के सफर के बारे में बात करते हैं। हर्षद मेहता घोटाले के बाद 90 के दशक में मार्केट में मुश्किल वक्त आया था। राकेश ने खुद को वैल्यू इनवेस्टर बनाए रखने की कोशिश की। इससे वह 90 के दशक में आए टेक्नोलॉजी बूम का फायदा उठाने से चूक गए। 2000 के बाद राकेश ने अपना रुख बदला। बेयर मार्केट्स से पहले के सालों में राकेश अक्सर मुझसे कहते थे, "इंडियन आईटी वर्ल्ड आईटी मार्केट का सिर्फ एक छोटा हिस्सा है। यह यहां से क्यों नहीं बढ़ेगा?" मेरा जवाब साफ था, "अगला बुल मार्केट नई तरह की कंपनियों का होगा न कि टेक्नोलॉजी कंपनियों का।"

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