Tree Cutting Laws: बहुत से लोग यह मानते हैं कि अगर जमीन उनकी खुद की है, तो उस पर लगा पेड़ भी उनका है और वे कभी भी उसे काट सकते हैं। लेकिन, यह बात आधी सच है। बेशक आपकी जमीन पर लगा पेड़ आपका है, लेकिन अगर वह हरा है, तो उसे आप जब चाहे काट नहीं सकते।
Tree Cutting Laws: बहुत से लोग यह मानते हैं कि अगर जमीन उनकी खुद की है, तो उस पर लगा पेड़ भी उनका है और वे कभी भी उसे काट सकते हैं। लेकिन, यह बात आधी सच है। बेशक आपकी जमीन पर लगा पेड़ आपका है, लेकिन अगर वह हरा है, तो उसे आप जब चाहे काट नहीं सकते।
भारत में हरे पेड़ को काटना कानून के दायरे में आता है, भले ही वह आपकी निजी जमीन पर हो। बिना सरकारी अनुमति पेड़ काटने पर भारी जुर्माना और जेल तक हो सकती है।
कानून क्यों सख्त है?
कुछ पेड़ जैसे नीम, पीपल, बरगद और अन्य स्थानीय किस्में पर्यावरण के लिहाज से काफी महत्वपूर्ण हैं। इसलिए इन्हें काटने की प्रक्रिया और भी सख्त है। कई राज्यों में ऐसे पेड़ों को काटने के लिए हाई लेवल परमिशन लेनी पड़ती है और बिना अनुमति ऐसा करना अपराध है।
भारत में पेड़ों की सुरक्षा के लिए अलग-अलग राज्यों ने अपने-अपने Tree Preservation Acts बनाए हैं। इनका मकसद है- पर्यावरण संतुलन बनाए रखना, शहरी और ग्रामीण इलाकों में हरियाली को बचाना और अंधाधुंध कटाई को रोकना। यही वजह है कि भले ही पेड़ आपकी जमीन पर हो, लेकिन उसे काटने से पहले सरकार की मंजूरी लेनी जरूरी है।
हरा पेड़ काटने की प्रक्रिया
अगर आपकी जमीन पर हरा पेड़ है और उसे खेती, घर बनवाने या किसी अन्य वजह से काटना चाहते हैं, तो इसके लिए सरकार से इजाजत लेनी होगी। ऐसे में जमीन मालिक को संबंधित विभाग (नगर निगम, पंचायत या वन विभाग) में आवेदन करना पड़ता है।
राज्यों के हिसाब से अलग नियम
देश में अधिकतर राज्यों ने पेड़ काटने के बारे में अलग-अलग नियम बना रखे हैं। इसमें तय किया गया है कि हरे पेड़ को कब और कैसे काटा जा सकता है। लेकिन, सभी जगह नियम यह है कि बिना परमिशन पेड़ काटने पर जुर्माना और जेल दोनों हो सकते हैं।
दिल्ली: राष्ट्रीय राजधानी में दिल्ली प्रिजर्वेशन ऑफ ट्रीज एक्ट, 1994 लागू है। किसी भी पेड़ को काटने, छांटने या ट्रांसप्लांट करने के लिए वन विभाग या ट्री ऑफिसर की मंजूरी जरूरी है। नियम तोड़ने पर ₹10,000 से ₹1 लाख तक का जुर्माना और सजा हो सकती है।
महाराष्ट्र: यहां महाराष्ट्र (Urban Areas) Preservation of Trees Act, 1975 लागू है। प्राइवेट जमीन पर भी पेड़ काटने से पहले नगर निगम या पंचायत से अनुमति लेना जरूरी है। अनुमति मिलने पर शर्त होती है कि बदले में और पेड़ लगाए जाएं।
उत्तर प्रदेश: देश के सबसे बड़े सूबे में U.P. Protection of Trees in Rural and Hill Areas Act, 1976 लागू है। गांव या शहर, दोनों जगह जमीन पर लगे पेड़ को काटने के लिए डिवीजनल फॉरेस्ट ऑफिसर (DFO) की अनुमति लेनी पड़ती है। उल्लंघन पर केस दर्ज होता है।
कर्नाटक: दक्षिण भारत के इस राज्य में कर्नाटक ट्री प्रिजर्वेशन एक्ट के तहत करीब 40 पेड़ों को छोड़कर बाकी सभी के लिए परमिशन जरूरी है। नारियल, केला, अमरूद और काजू जैसे पेड़ इस दायरे में नहीं आते।
केरल: यहां केरल प्रिजर्वेशन ऑफ ट्रीज एक्ट, 1986 के तहत खासतौर पर जैव विविधता वाले पेड़ों की कटाई पर सख्त रोक है। यहां प्राइवेट जमीन पर भी आसानी से अनुमति नहीं मिलती।
तमिलनाडु: तमिलनाडु प्रिजर्वेशन ऑफ ट्रीज एक्ट, 1976 लागू है। कृषि कार्य में बाधा बनने वाले पेड़ों की कटाई के लिए लिखित आवेदन पर मंजूरी मिल सकती है।
पश्चिम बंगाल: तीन से ज्यादा पेड़ काटने की अनुमति लेने से पश्चिम बंगाल ट्रीज (प्रिजर्वेशन) एक्ट, 2006 के तहत पहले री-प्लांटेशन प्लान जमा करना जरूरी है। कोलकाता में इसका अधिकार KMC (Kolkata Municipal Corporation) के पास है।
हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड: पहाड़ी राज्यों में नियम सबसे कड़े हैं। यहां प्राइवेट जमीन पर भी हरा पेड़ काटने की अनुमति मिलना लगभग नामुमकिन है। यह सिर्फ विशेष परिस्थितियों में दी जाती है, जैसे सड़क या सार्वजनिक परियोजनाओं के लिए।
किन पेड़ों के लिए नहीं चाहिए परमिशन?
कुछ राज्यों ने कुछ पेड़ों को छूट दी है। जैसे कि नारियल, केला, अमरूद, काजू, कुछ अन्य फलदार पेड़। लेकिन, यह लिस्ट राज्यों के हिसाब से अलग हो सकती है।
अगर आपके दिमाग में यह सवाल है कि अपनी जमीन पर लगे पेड़ को कभी भी काट सकते हैं या नहीं, तो जवाब साफ है- नहीं। इसके लिए राज्य सरकार या स्थानीय निकाय से अनुमति लेनी ही होगी। भारत में हर राज्य ने इसके लिए अलग-अलग कानून बनाए हैं और उनका उल्लंघन करने पर कड़ी कार्रवाई होती है।
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