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H-1B वीजा की 100000 डॉलर फीस का ज्यादा असर टीसीएस और इंफोसिस पर पड़ेगा

एच-1बी वीजा के लिए ट्रंप की 100000 डॉलर की फीस का उन मल्टीनेशनल स्टाफिंग फर्मों पर असर पड़ेगा, जो एच-1बी वर्कर्स की तलाश वाली कंपनियों के लिए मिडिलमैन का काम करती हैं। इनमें टीसीएस, इंफोसिस और कॉग्निजेंट टेक्नोलॉजी सॉल्यूशंस जैसी कंपनियां शामिल हैं

MoneyControl Newsअपडेटेड Dec 15, 2025 पर 7:07 PM
H-1B वीजा की 100000 डॉलर फीस का ज्यादा असर टीसीएस और इंफोसिस पर पड़ेगा
रिपब्लिकन और डेमोक्रेट्स दोनों दलों के सांसदों ने दावा किया है कि कंपनियां अमेरिकी वर्कर्स के सस्ते विकल्प के लिए एच-1बी वीजा प्रोग्राम का इस्तेमाल करती हैं।

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के नए एच-1बी वीजा पर 1,00,000 डॉलर की फीस लगाने के फैसले का बड़ा असर आईटी आउटसोर्सिंग और स्टाफिंग इंडस्ट्रीज पर पड़ेगा। विदेशी वर्कर्स के लिए अमेरिका में काम करने के लिए एच-1बी वीजा जरूरी है। ब्लूमबर्ग की एनालिसिस के मुताबिक, इस फीस का उन मल्टीनेशनल स्टाफिंग फर्मों पर असर पड़ेगा, जो एच-1बी वर्कर्स की तलाश वाली कंपनियों के लिए मिडिलमैन का काम करती हैं। इनमें टीसीएस, इंफोसिस और कॉग्निजेंट टेक्नोलॉजी सॉल्यूशंस जैसी कंपनियां शामिल हैं।

ये तीन कंपनियां एच-1बी वीजा का करती हैं ज्यादा इस्तेमाल

मई 2020 से मई 2024 के बीच, इन तीनों कंपनियों के करीब 90 फीसदी एच-1बी वीजा अप्लिकेशंस को अमेरिकी कंसुलेट्स की मंजूरी मिली थी। एच-1बी वीजा पर नई फीस के चलते इन कंपनियों के लिए विदेशी वर्कर्स को अप्वाइंट करने के लिए लाखों डॉलर खर्च करने पड़ेंगे। मई 2020 से मई 2024 के बीच इंफोसिस ने 10,400 वर्कर्स की हायरिंग की थी, जिनमें से 93 फीसदी हायरिंग पर उसे एच-1बी वीजा फीस चुकाना पड़ सकता था। इससे उसका खर्च 1 अरब डॉलर से ज्यादा बढ़ जाता।

1,00,000 डॉलर की फीस का असर वीजा की डिमांड पर पड़ेगा

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