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मुंबई के कारोबारियों को कपास और अमेरिका ने 1800 के दशक में बनाया था अमीर

1947 में आजादी के बाद सरकार ने कमोडिटी ट्रेड एसोसिएशन के कामकाज में दखल देना शुरू किया ताकि किसी तरह की अव्यवस्था को रोका जा सके। 1952 में सरकार ने Forward Contracts (Regulation) Act लागू किया ताकि किसी तरह की सट्टेबाज़ी से कमोडिटी मार्केट में उथलपुथल ना आए। 1953 में Forward Markets Commission बना जिसने फ्यूचर ट्रेडिंग को रेगुलेट किया

Pratima Sharmaअपडेटेड Aug 26, 2025 पर 5:31 PM
मुंबई के कारोबारियों को कपास और अमेरिका ने 1800 के दशक में बनाया था अमीर
कॉटन के बाद जूट, तिलहन, सोना-चांदी और दूसरी कमोडिटी के लिए भी संगठित एक्सचेंज बने

क्या आप जानते हैं कि कमोडिटी मार्केट कितना पुराना है और सबसे पहले भारत में किस कमोडिटी की ट्रेडिंग हुई थी। भारत के कमोडिटी मार्केट का इतिहास काफी दिलचस्प और पुराना है। और आज मुंबई में जो अमीर कारोबारी हैं उनकी किस्मत बदलने में भी इस कमोडिटी का सबसे अहम योगदान रहा है। देश में सबसे पहले संगठित तौर पर कपास की ट्रेडिंग शुरू हुई थी। कमोडिटी के वायदा कारोबार के लिए खासतौर पर 150 साल पहले 1875 में बॉम्बे कॉटन ट्रेड एसोसिएशन की शुरुआत की गई थी।

और यहीं से भारतीय कमोडिटी बिजनेस के भविष्य की शुरुआत हुई। इससे पहले भी देश के अलग-अलग हिस्सों में मसाले, अनाज, तेल और मेटल का कारोबार होता था लेकिन ये कारोबार संगठित तौर पर नहीं होते थे।

1850 के दशक तक पेड़ के नीचे होती थी डील

1850 के दशक तक मुंबई के बंदरगाह वाले इलाकों में कारोबारी और दलाल बरगद के पेड़ के नीचे बैठकर कपास की खरीद-बिक्री करते थे। लेकिन 1875 में जब ‘बॉम्बे कॉटन ट्रेड एसोसिएशन’ की शुरुआत हुई तो ये लेनदेन ज्यादा संगठित तौर पर होने लगा। शुरुआती दौर में इस संगठन में सेठ प्रेमचंद रायचंद, रमदास मोरारजी और कई दूसरे गुजराती और पारसी कारोबारी शामिल थे।

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