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The satanic verses : 36 साल के प्रतिबंध के बाद सलमान रुश्दी की 'द सैटेनिक वर्सेज' की भारत में हुई वापसी

यह पुस्तक, जिस पर 'सीमित स्टॉक' अंकित है, वर्तमान में दिल्ली के बहरीसन्स बुकसेलर्स में डिस्प्ले पर लगी है। नवंबर में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने उपन्यास के इंपोर्ट पर राजीव गांधी सरकार के प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिका पर कार्यवाही बंद कर दी थी

MoneyControl Newsअपडेटेड Dec 25, 2024 पर 8:09 PM
The satanic verses : 36 साल के प्रतिबंध के बाद सलमान रुश्दी की 'द सैटेनिक वर्सेज' की भारत में हुई वापसी
किताब के प्रकाशित होने के कुछ समय बाद ही इसे काफ़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ा था। इसके बाद ईरानी नेता रूहोल्लाह खोमैनी ने मुसलमानों से सलमान रुश्दी और उनके प्रकाशकों को क़त्ल करने का आग्रह करते हुए एक फ़तवा जारी किया था

The satanic verses : विवादों के बीच भारत सरकार द्वारा प्रतिबंधित किये जाने के लगभग 37 वर्ष बाद, सलमान रुश्दी की किताब द सैटेनिक वर्सेज चुपचाप फिर से सामने आ गयी है। यह पुस्तक,जिस पर 'सीमित स्टॉक' लिखा हुआ है, वर्तमान में दिल्ली के बहरीसन्स बुकसेलर्स में डिस्प्ले पर लगी है। पुस्तक विक्रेता ने X पर एक पोस्ट में कहा, "@सलमान रुश्दी की द सैटेनिक वर्सेज अब बहरिसंस बुकसेलर्स के पास उपलब्ध है! इस अभूतपूर्व और उत्तेजक उपन्यास ने अपनी कल्पनाशील कहानी और बोल्ड थीम के जरिए दशकों से पाठकों को आकर्षित किया है। यह अपनी रिलीज़ के बाद से ही भारी वैश्विक विवाद के केंद्र में रही है, जिसने भिव्यक्ति की आजादी,आस्था और कला पर बहस को जन्म दिया है।"

पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया की एडिटर-इन-चीफ मानसी सुब्रमण्यम ने भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर रुश्दी के हवाले से पोस्ट किया। उन्होंने लिखा "भाषा साहस है: किसी विचार की कल्पना करने,उसे बोलने और ऐसा करके उसे सच करने की क्षमता।' आखिरकार, सलमान रुश्दी की द सैटेनिक वर्सेज को 36 साल के प्रतिबंध के बाद भारत में बेचने की अनुमति मिल गई है। यह किताब नई दिल्ली के बहरीसन बुकस्टोर पर उपलब्ध है"।

नवंबर में, दिल्ली उच्च न्यायालय ने उपन्यास के इंपोर्ट पर राजीव गांधी सरकार के प्रतिबंध को चुनौती देने वाली याचिका पर कार्यवाही बंद कर दी थी और कहा था कि चूंकि अधिकारी प्रासंगिक अधिसूचना पेश करने में विफल रहे हैं,इसलिए यह "मान लिया जाना चाहिए कि वह मौजूद ही नहीं है"। यह आदेश तब आया जब सरकारी अधिकारी 5 अक्टूबर 1988 की अधिसूचना पेश करने में विफल रहे, जिसमें पुस्तक के आयात पर इंपोर्ट लगाया गया था।

अदालत ने आगे कहा, "इन परिस्थितियों के मद्देनजर, हमारे पास यह मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं है कि ऐसी कोई अधिसूचना मौजूद नहीं है और इसलिए, हम इसकी वैधता की जांच नहीं कर सकते और रिट याचिका को निष्फल मानकर उसका निपटारा नहीं कर सकते।"

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