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Muharram 2024: मुहर्रम क्या है, क्यों निकाली जाती हैं ताजिया, आशूरा और हजरत इमाम हुसैन के बारे में जानें सबकुछ

Muharram Tazia Importance: इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक, मुहर्रम इस्लाम धर्म का पहला महीना होता है। यानी मुहर्रम इस्लाम के नए साल या हिजरी सन का शुरुआती महीना है। मुहर्रम बकरीद के पर्व के 20 दिनों के बाद मनाया जाता है। मुहर्रम महीने के 10वें दिन यानी 10 तारीख को रोज-ए-आशुरा कहा जाता है। इस दिन को इस्लामिक कैलेंडर में बेहद अहम माना गया है

MoneyControl Newsअपडेटेड Jul 17, 2024 पर 10:13 AM
Muharram 2024: मुहर्रम क्या है, क्यों निकाली जाती हैं ताजिया, आशूरा और हजरत इमाम हुसैन के बारे में जानें सबकुछ
Muharram Tazia Importance: धार्मिक मान्यताओं के अनुसार करीब 1400 साल पहले मुहर्रम के 10वें दिन पैगंबर हजरत मोहम्मद के नवासे हजरत इमाम हुसैन की शहादत हुई थी।

मुहर्रम मुस्लिम समुदाय के लोगों का खास पर्व है। मुहर्रम इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना होता है। 7 जुलाई 2024 को मुहर्रम का महीना शुरू हो चुका है। मुहर्रम महीने का दंसवा दिन बहुत ही खास होता है। मुहर्रम बकरीद के 20 दिन बाद मनाया जाता है। इस्लाम धर्म के लोगों के लिए यह महीना बेहद खास होता है। इसी महीने में हजरत इमाम हुसैन की शहादत हुई थी। हजरत इमाम हुसैन इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद साहब के छोटे नवासे थे। उनकी शहादत की याद में मुहर्रम के महीने के दसवें दिन को लोग मातम के तौर पर मनाते हैं। जिसे आशूरा भी कहा जाता है। इस दिन मुस्लिम समाज के लोग देशभर में जुलूस निकालते हैं।

कर्बला की जंग में उन्होंने इस्लाम की रक्षा के लिए अपने परिवार और 72 साथियों के साथ शहादत दी। यह जंग इराक के कर्बला में यजीद की सेना और हजरत इमाम हुसैन के बीच हुई थी। इसलिए इस महीने को गम के तौर पर भी मनाते हैं। इमाम हुसैन की शहादत की याद में ही ताजिया और जुलूस निकाला जाता है। ताजिया निकालने की परंपरा सिर्फ शिया मुस्लिमों में ही देखी जाती है। जबकि सुन्नी समुदाय के लोग ताजियादारी नहीं करते हैं।

Muharram 2024: कौन थे हजरत इमाम हुसैन?

हजरत इमाम हुसैन पैगंबर ए इस्लाम हजरत मुहम्मद साहब के नवासे थे। इमाम हुसैन के वालिद यानी पिता का नाम मोहतरम 'शेरे-खुदा' अली था, जो कि पैगंबर साहब के दामाद थे। इमाम हुसैन की मां बीबी फातिमा थीं। हजरत अली मुसलमानों के धार्मिक-सामाजिक और राजनीतिक मुखिया थे। उन्हें खलीफा बनाया गया था। कहा जाता है कि हजरत अली के निधन के बाद लोग इमाम हुसैन को खलीफा बनाना चाहते थे। लेकिन हजरत अमीर मुआविया ने खिलाफत पर कब्जा कर लिया। मुआविया के बाद उनके बेटे यजीद ने खिलाफत अपना ली। यजीद क्रूर शासक बना। उसे इमाम हुसैन का डर था। इंसानियत को बचाने के लिए यजीद के खिलाफ इमाम हुसैन के कर्बला की जंग लड़ी और शहीद हो गए।

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