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WeWork India IPO में लगाई है बोली? इन खतरों को लेकर रहें सतर्क

WeWork India IPO: वीवर्क इंडिया के ₹3,000 करोड़ के आईपीओ को ICICI प्रूडेंशियल एमएफ, HDFC एमएफ, निप्पॉन एमएफ और आदित्य बिड़ला एमएफ जैसे एंकर निवेशकों का शानदार रिस्पांस मिला लेकिन आईपीओ खुला तो निवेशकों का रिस्पांस काफी ठंडा रहा। अब इसके आईपीओ को लेकर प्रॉक्सी एडवायजरी फर्म ने कई गंभीर सवाल खड़े किए हैं। जानिए क्या है इस कंपनी को लेकर दिक्कतें?

Edited By: Jeevan Deep Vishawakarmaअपडेटेड Oct 07, 2025 पर 2:06 PM
WeWork India IPO में लगाई है बोली? इन खतरों को लेकर रहें सतर्क
WeWork India के ₹3,000 करोड़ के आईपीओ के लिए प्राइस बैंड ₹615-₹648 है। इसके तहत ₹10 की फेस वैल्यू वाले 4.63 करोड़ शेयरों की बिक्री हुई जिसमें से करीब 45% आईपीओ खुलने से पहले एंकर निवेशकों को जारी हुए।

WeWork India IPO: प्रॉक्सी एडवायजरी फर्म इनगवर्न (InGovern) ने वीवर्क इंडिया के आईपीओ को लेकर सवाल उठाए हैं। इनगवर्न ने यह सवाल ऐसे समय में उठाए हैं, जब एंकर निवेशकों से तगड़े रिस्पांस के बाद इश्यू खुलने पर इसे निवेशकों का फीका रिस्पांस मिला। प्रॉक्सी एडवायजरी फर्म के फाउंडर श्रीराम सुब्रमणियन ने मनीकंट्रोल से बातचीत में कहा कि आईपीओ का पूरी तरह से पूरी तरह से ऑफर फॉर सेल होना और लिस्टिंग के पहली की शर्तों से प्रमोटर के इरादे, वित्तीय स्थिरता और निगरानी पर सवाल उठते हैं। ऑफर फॉर सेल का मतलब है कि इश्यू के तहत कोई नया शेयर नहीं जारी होगा।

वीवर्क इंडिया के ₹3,000 करोड़ के आईपीओ के लिए प्राइस बैंड ₹615-₹648 है। इसके तहत ₹10 की फेस वैल्यू वाले 4.63 करोड़ शेयरों की बिक्री हुई जिसमें से करीब 45% आईपीओ खुलने से पहले एंकर निवेशकों को जारी हुए। एंकर निवेशकों से कंपनी ने ₹1348 करोड़ जुटाए थे।

क्या हैं WeWork India IPO को लेकर चिंताएं?

इनगवर्न ने एक सवाल तो आईपीओ से पहले कंपनी के प्रमोटर्स के गिरवी रखे शेयरों को छुड़ाने को लेकर उठाया है। Embassy Buildcon ने कंपनी के प्री-आईपीओ शेयरों का 53% हिस्सा करीब ₹2065 करोड़ के कर्ज के लिए गिरवी रखा है लेकिन आईपीओ के लिए इसे अस्थायी तौर पर छुड़ाया गया है। इसे लेकर एक एग्रीमेंट हुआ है कि अगर लिस्टिंग नहीं होती है तो 45 दिनों के भीतर शेयरों को फिर गिरवी रखा जाएगा। इनगवर्न का कहना है कि ऐसे मामले कम ही सामने आए हैं, जब सिर्फ ऑफर फॉर सेल के लिए गिरवी रखे शेयरों को अस्थायी तौर पर छुड़ाया गया हो। फाउंडर श्रीराम सुब्रमणियन का कहना है कि इसके चलते प्रमोटर्स की होल्डिंग लिस्टिंग से पहले बिना किसी प्रतिबंध के दिखती है लेकिन बाद में जब इन्हें फिर गिरवी रखना पड़ता है या कर्ज चुकाने में देरी होती है तो फिर से रिस्क की स्थिति बन जाती है।

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