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Lok Sabha Elections 2024: जयंत चौधरी के सामने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नई चुनौती, RLD को फिर से हसिल करनी होगी अपनी खोई हुई जमीन

Lok Sabha Elections 2024: जयंत चौधरी सतर्क हैं और वह अपनी चुनौतियों को समझ भी रहे हैं। वह जानते हैं कि इस बार परिणाम देने ही होंगे, क्योंकि उनकी जमीन अगर इस बार भी खिसकी तो आगे कठिनाई ही कठिनाई है। RLD के नेता राजकुमार सांगवान कहते हैं कि जयंत चौधरी ने इस बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बहुत मजबूत जमीन तैयार की है और उसके परिणाम दिखेंगे

Brijesh Shuklaअपडेटेड Feb 07, 2024 पर 11:07 PM
Lok Sabha Elections 2024: जयंत चौधरी के सामने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नई चुनौती, RLD को फिर से हसिल करनी होगी अपनी खोई हुई जमीन
जयंत चौधरी सतर्क हैं और वह अपनी चुनौतियों को समझ भी रहे हैं। वह जानते हैं कि इस बार परिणाम देने ही होंगे, क्योंकि उनकी जमीन अगर इस बार भी खिसकी तो आगे कठिनाई ही कठिनाई है

Lok Sabha Elections 2024: वह भी दौर था, जब पश्चिम उत्तर प्रदेश (Western UP) में राष्ट्रीय लोकदल (RLD) की तूती बोलती थी। इसके पीछे किसान नेता और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह (Chaudhary Charan Singh) की वह थाती थी, जिसे उन्होंने जीवन में कमाया था। लेकिन अब RLD के लिए राजधानी दिल्ली से लगी यह उपजाऊ भूमि भी कठिन चुनौती बनी हुई है। सवाल यह है की क्या RLD अपने पुराने रुतबे को हासिल कर पाएगा या नहीं? क्योंकि अब अपना दबदबा हासिल करने के लिए चौधरी चरण सिंह के पोते और चौधरी अजीत सिंह के बेटे जयंत चौधरी (Jayant Chaudhary) के पास समय कम है। इस क्षेत्र में अब बीजेपी का दबदबा है और वो भी तब, जब पश्चिमी उत्तर प्रदेश जाट और मुस्लिम बहुल है।

जयंत चौधरी सतर्क हैं और वह अपनी चुनौतियों को समझ भी रहे हैं। वह जानते हैं कि इस बार परिणाम देने ही होंगे, क्योंकि उनकी जमीन अगर इस बार भी खिसकी तो आगे कठिनाई ही कठिनाई है। RLD के नेता राजकुमार सांगवान कहते हैं कि जयंत चौधरी ने इस बार पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बहुत मजबूत जमीन तैयार की है और उसके परिणाम दिखेंगे। समाजवादी पार्टी ने RLD के लिए सात सीट छोड़ी हैं। वैसे तो अब तक इस बात की घोषणा नहीं की गई है कि वे कौन सी सात सीट हैं, जिस पर RLD लड़ेगा, लेकिन जानकारों का कहना है की बागपत, कैराना, मुजफ्फरनगर, अमरोहा, बिजनौर, मथुरा सीट RLD के लिए छोड़ी गई हैं।

बड़े चौधरी यानी चौधरी चरण सिंह ने मुसलमान और पिछड़े वर्ग का जो मजबूत समीकरण तैयार किया था, वो धीरे-धीरे अब बिखर चुका है। जयंत चौधरी के सामने सबसे बड़ी चुनौती यही है कि वह पुराने समीकरणों को दुरुस्त करें और उन वर्गों को एक बार फिर जोड़ें, जो कभी चौधरी साहब के साथ हुआ करते थे और जिनके बल पर चौधरी चरण सिंह देश की राजनीति के धुरी बने हुए थे। हालांकि, स्थितियां फिलहाल बहुत अनुकूल नहीं है।

RLD के ही नेता बताते हैं कि चौधरी साहब ने किसानों को साथ जोड़ा था, लेकिन अब किसान के नाम पर जाट मतदाता ही बचा है और दूसरे वर्ग पर बीजेपी ने अपनी स्थिति मजबूत कर ली है। चौधरी ने इस बार वो सारे प्रयास किए हैं, जिससे उन्हें दूसरे वर्गों का भी समर्थन हासिल हो जाए, लेकिन सफलता-असफलता का आकलन चुनाव परिणाम से ही तय होगा।

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