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Dollar vs Rupee Currency : रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर पर, 89 रुपए प्रति डॉलर के पार, निवेशकों पर क्या होगा इसका असर?

Dollar vs Rupee Currency : रुपये में रिकॉर्ड गिरावट से इक्विटी में शॉर्ट-टर्म सावधानी बढ़ी है, जिससे इम्पोर्ट वाले सेक्टर पर दबाव पड़ा है, जबकि एक्सपोर्टर्स को सपोर्ट मिला है। रुपया आज रिकॉर्ड निचले स्तर पर ट्रेड कर रहा है। यह 89 रुपए प्रति डॉलर के पार नजर आ रहा है

Edited By: Sudhanshu Dubeyअपडेटेड Nov 24, 2025 पर 3:30 PM
Dollar vs Rupee Currency : रुपया रिकॉर्ड निचले स्तर पर, 89 रुपए प्रति डॉलर के पार, निवेशकों पर क्या होगा इसका असर?
Rupee Vs dollar : ज़्यादातर एक्सपर्ट्स मानते हैं कि यह दर्द अस्थाई हो सकता है। संभावित इंडिया-US ट्रेड डील से ट्रेड डेफिसिट कम हो सकता है और करेंसी को स्टेबल करने में मदद मिल सकती है

Dollar Vs Rupee : शुक्रवार 24 नवंबर को डॉलर के मुकाबले भारतीय रुपया 89.49 रुपये के रिकॉर्ड निचले स्तर पर आ गया। डॉलर की घरेलू मांग बढ़ने से रुपए पर दबाव बना है। लोकल करेंसी में तेज़ गिरावट से आमतौर पर इक्विटी मार्केट में कुछ समय के लिए रिस्क-ऑफ (जोखिम से बचने) का माहौल बनता है, क्योंकि ज़्यादा इंपोर्टेड महंगाई,बढ़ती लागत और इंपोर्ट करने वाली कंपनियों पर दबाव जैसी चिंताएं पैदा होती हैं।

लेकिन, इस हफ़्ते रुपए में यह तेज़ गिरावट तब आई है जब दुनिया भर में माहौल शांत है। इससे ट्रेडर्स हैरान हैं और करेंसी मार्केट पर उनका फोकस और बढ़ गया है। CR फॉरेक्स एडवाइजर्स के मुताबिक, रुपये में गिरावट इसलिए अलग लग रही है, क्योंकि ग्लोबल संकेत लगभग फ्लैट हैं, डॉलर इंडेक्स स्थिर है, कच्चे तेल की कीमतों में कोई बदलाव नहीं हुआ है और उभरते हुए बाज़ारों की करेंसीज में भी कोई दबाव नहीं दिख रहा है।

ब्रोकरेज फर्म ने आगे कहा, "डॉलर की सप्लाई में कमी और इसकी ज़बरदस्त मांग से लिक्विडिटी का गैप बन गया है। RBI, जो चुपचाप 88.80 के लेवल का बचाव कर रहा था,अब एक तरफ हट गया है, जिससे स्टॉप-लॉस ऑर्डर और बढ़-चढ़कर दांव लगने शुरू हो गए हैं"।

रुपये में भारी गिरावट आमतौर पर इक्विटी मार्केट के सेंटिमेंट पर असर डालती है। मेहता इक्विटीज के राहुल कलंतरी ने कहा कि रुपए में तेज़ गिरावट से आमतौर पर इक्विटी मार्केट में कुछ समय के लिए रिस्क-ऑफ (जोखिम से बचने) का माहौल बनता है, क्योंकि ज़्यादा इंपोर्टेड महंगाई,बढ़ती लागत और इंपोर्ट करने वाली कंपनियों पर दबाव जैसी चिंताएं पैदा होती हैं।

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