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NSE ने 1000 से अधिक शेयरों को कर दिया कोलेटरल लिस्ट से बाहर, समझें क्या है इस फैसले का मतलब

NSE Collateral List: नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) ने हाल ही में एक सर्कुलर जारी किया। इसमें इंट्राडे या डेरिवेटिव ट्रेडिंग में मार्जिन फंडिंग के लिए कोलेटरल के तौर पर इस्तेमाल होने वाले सिक्योरिटीज की एलिजिबिलिटी को सख्त कर दिया है। इसके अलावा अभी इस लिस्ट में 1730 एलिजिबल सिक्योरिटीज हैं जिसमें से 1010 को बाहर कर दिया गया। समझें इस पूरी कवायद का मतलब और असर

Edited By: Moneycontrol Newsअपडेटेड Jul 13, 2024 पर 12:05 AM
NSE ने 1000 से अधिक शेयरों को कर दिया कोलेटरल लिस्ट से बाहर, समझें क्या है इस फैसले का मतलब
मार्जिन ट्रेडिंग फैसिलिटी के जरिए ट्रेडर्स या निवेशक अपने पास पड़े पैसों से अधिक वैल्यू के शेयरों को खरीद सकते हैं। इसके लिए ब्रोकर लोन देता है।

NSE Collateral List: नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) ने हाल ही में एक सर्कुलर जारी किया। इसमें इंट्राडे या डेरिवेटिव ट्रेडिंग में मार्जिन फंडिंग के लिए कोलेटरल के तौर पर इस्तेमाल होने वाले सिक्योरिटीज की एलिजिबिलिटी को सख्त कर दिया है। इसके अलावा अभी इस लिस्ट में 1730 एलिजिबल सिक्योरिटीज हैं जिसमें से 1010 को बाहर कर दिया गया। बाहर होने वाले स्टॉक्स में अदाणी पावर, यस बैंक, सुजलॉन, भारत डायनेमिक्स और पेटीएम जैसे दिग्गज शेयर हैं। एनएसई का कहना है कि 1 अगस्त से सिर्फ उन्हीं शेयरों को कोलेटरल के तौर पर इस्तेमाल किया जाएगा जिनकी पिछले 6 महीने में कम से कम 99 फीसदी दिनों में ट्रेडिंग हुई हो और जिनका इंपैक्ट कॉस्ट 1 लाख रुपये के ऑर्डर वैल्यू पर 0.1 फीसदी तक हो।

अब यहां कई सवाल उठते हैं, जैसे कि एनएसई को यह कदम उठाने की जरूरत क्यों पड़ी, इसका असर क्या होगा, मार्जिन फंडिंग क्या है, शेयरों को गिरवी क्यों रखते हैं, कोलेटरल क्या है और इंपैक्ट कॉस्ट क्या है? इन सभी सवालों के जवाब एक-एक करके यहां दिए जा रहे हैं।

MTF क्या है?

सबसे पहले समझते हैं कि मॉर्जिन ट्रेडिंग फैसिलिटी (MTF) क्या है और ट्रेडिंग के लिए शेयरों को गिरवी रखने की जरूरत क्यों पड़ती है। मार्केटिंग की एक स्ट्रैटेजी है 'अभी खरीदो, पेमेंट बाद में', बस इसी तरह से एमटीएफ में भी निवेशकों को ट्रेडिंग के लिए जरूरी पैसों का कुछ हिस्सा ही चुकाना पड़ता है और बाकी पैसा ब्रोकर लोन की तरह दे देती है। जैसे कि मान लें कि 100 रुपये के भाव वाले 1 हजार शेयरों की ट्रेडिंग करनी है तो 1 लाख रुपये की जरूरत पड़ेगी। अब या तो आप पूरे एक लाख रुपये अपने पास से लगाएं या 30 फीसदी यानी 30 हजार रुपये खुद का लगाएं और बाकी 70 फीसदी यानी 70 हजार रुपये ब्रोकर से लोन के रूप में मिल जाएगा। इस पर ब्रोकर ब्याज वसूलती है।

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