कंपनियां रॉयल्टी के पेमेंट में पूरी जानकारी नहीं दे रही हैं। वे रॉयल्टी पेमेंट की वजह भी नहीं बता रही हैं। सेबी की स्टडी से यह जानकारी मिली है। आम तौर पर टेक्नोलॉजी के ट्रांसफर, ब्रांड नाम के इस्तेमाल, ट्रेडमार्केट के इस्तेमाल या किसी दूसरे तरह के समझौते के तहत एक कंपनी दूसरी कंपनी को रॉयल्टी का पेमेंट करती है। इंडिया में लिस्टेड कंपनियां अपनी पेरेंट कंपनी या सब्सिडियरी को रॉयल्टी का पेमेंट करती हैं। सेबी ने लिस्टेड कंपनियों की तरफ से अपने रिलेटेड पार्टी (आरपी) को रॉयल्टी पेमेंट की स्टडी की थी।
