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शुगर स्टॉक्स पर इस कारण अनिल गोएल को भरोसा, लेकिन स्टील शेयरों में क्यों दम नहीं

Stock Market Tips: दिग्गज निवेशक अनिल कुमार गोएल (Anil Kumar Goel) ने अपनी कारोबारी जिंदगी स्टील ट्रेडर के रूप में शुरू किया था जिसके चलते कमोडिटी कंपनियों के शेयरों को लेकर वह हमेशा नरम रहे हैं। कमोडिटी कंपनियों के डिमांड-सप्लाई डायनेमिक्स और साइकिल्स को वे अच्छे से समझते हैं। मौजूदा परिस्थितियों में उनका भरोसा शुगर और टेक्सटाइल कंपनियों पर है जबकि स्टील कंपनियों को लेकर वह बियरिश हैं

Edited By: Moneycontrol Newsअपडेटेड Oct 24, 2023 पर 12:20 PM
शुगर स्टॉक्स पर इस कारण अनिल गोएल को भरोसा, लेकिन स्टील शेयरों में क्यों दम नहीं
दिग्गज निवेशक अनिल कुमार गोएल शुगर और टेक्सटाइल शेयरों को लेकर बुलिश हैं जबकि स्टील को लेकर बियरिश हैं।

Stock Market Tips: दिग्गज निवेशक अनिल कुमार गोएल (Anil Kumar Goel) ने अपनी कारोबारी जिंदगी स्टील ट्रेडर के रूप में शुरू किया था जिसके चलते कमोडिटी कंपनियों के शेयरों को लेकर वह हमेशा नरम रहे हैं। कमोडिटी कंपनियों के डिमांड-सप्लाई डायनेमिक्स और साइकिल्स को वे अच्छे से समझते हैं। मौजूदा परिस्थितियों में उनका भरोसा शुगर और टेक्सटाइल कंपनियों पर है जबकि स्टील कंपनियों को लेकर वह बियरिश हैं। मनीकंट्रोल से बातचीत में उन्होंने बताया कि शुगर और टेक्सटाइल शेयरों को लेकर वह बुलिश क्यों हैं और स्टील को लेकर बियरिश क्यों हैं?

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अनिल कुमार गोएल के पोर्टफोलियो में शुगर स्टॉक्स का वजन अच्छा-खासा है। इसे लेकर उनका कहना है कि एथेनॉल पॉलिसी के चलते शुगर इंडस्ट्री अब साइक्लिकल नहीं रह गई है। जल्द ही ऐसा समय आने वाला है जब शुगर कंपनियां जैसा भाव मिलेगा, उसके हिसाब से या तो चीनी बनाएंगी या एथेनॉल। अनिल के मुताबिक जब एथेनॉल बनना शुरू हुआ था तो उस समय सिर्फ 50 लाख टन चीनी से ही एथेनॉल बनाया जाता था। अब अनिल का मानना है कि 2025-26 तक 70 लाख टन चीनी एथेनॉल बनाने के लिए उपलब्ध हो जाएगी और तब चीनी और एथेनॉल के उत्पादन में संतुलन हो जाएगा।

अब अगर चीनी की कीमतें अधिक होती हैं, तो यह बनेगी और अगर एथेनॉल की कीमतें अधिक होंगी तो इसे बनाया जाएगा। अनिल के मुताबिक यह मॉडल ब्राजील में सफल हो चुका है और यहां कंपनियां 30 फीसदी चीनी और 70 फीसदी एथेनॉल बना सकती हैं। कीमत के मुताबिक कभी-कभी यह 50-50 हो जाता है। अनिल के मुताबिक राजनीतिक रूप से यह काफी संवेदनशील सेक्टर है और इसमें बार-बार नीतिगत बदलाव की संभावना रहती है।

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