कभी एक आम आदमी के लिए रिटायरमेंट के लिए 1 करोड़ रुपये को बहुत माना जाना था। कुछ साल पहले तक यह रकम न सिर्फ रिटायरमेंट के बाद घर चलाने, बल्कि बच्चों की पढ़ाई और स्वास्थ्य जरूरतों के लिए भी पर्याप्त मानी जाती थी। लेकिन बढ़ती महंगाई और समय के साथ बदलती चीजों ने इस धारणा को चुनौती दी है। आज यही रकम तेजी से घटती परचेजिंग पावर और बदलती जीवनशैली के सामने छोटी पड़ने लगी है।