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Chhoti Diwali 2025: नरक चतुर्दशी में जलाते हैं गाय के गोबर के दीए, जानें क्या है इसका महत्व

Chhoti Diwali 2025: नरक चतुर्दशी के दिन दक्षिण दिशा में गाय के गोबर का दीपक जलाने वाले को यमराज का आशीर्वाद मिलता है और उन्हें नरक के द्वार से नहीं गुजरना पड़ता है। इससे उनका नरक जाने का भय दूर होता है। दक्षिण दिशा यमराज की होती है।

MoneyControl Newsअपडेटेड Oct 18, 2025 पर 9:25 PM
Chhoti Diwali 2025: नरक चतुर्दशी में जलाते हैं गाय के गोबर के दीए, जानें क्या है इसका महत्व
छोटी दिवाली पर जलाए गए गोबर के दीये नकारात्मक ऊर्जा का नाश करते हैं।

Chhoti Diwali 2025: कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को छोटी दिवाली मनाई जाती है। यह त्योहार दिवाली से एक दिन पहले मनाई जाती हे। छोटी दिवाली को नरक चतुर्दशी भी कहते हैं। इस दिन गाय के गोबर का दीपक जलाने की परंपरा है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन गाय के गोबर का दीपक जलाने से नरक जाने का भय दूर होता है। ये दीपक नकारात्मक ऊर्जा को दूर करते हैं, घर में सुख-शांति लाते हैं। इस दिन दक्षिण दिशा में जलाए जाने वाले ये दीये यमराज को समर्पित होते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि दिवाली पर गाय के गोबर के दीये क्यों जलाए जाते हैं?

गाय के गोबर के चार छोटे दीए जलाएं

छोटी दिवाली पर जलाए गए गोबर के दीये नकारात्मक ऊर्जा का नाश करते हैं। इन दीयों का धार्मिक और आध्यात्मिक दोनों ही महत्व है। छोटी दिवाली पर गाय के गोबर से बने चार छोटे दीये जलाने चाहिए। अगर चार दीये उपलब्ध नहीं हैं, तो एक ही काफी होगा। इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है।

यम की दिशा में जलाते हैं दीए

मान्यता है कि नरक चतुर्दशी के दिन दक्षिण दिशा में गाय के गोबर का दीपक जलाने वाले को यमराज का आशीर्वाद मिलता है और उन्हें नरक के द्वार से नहीं गुजरना पड़ता है। इससे उनका नरक जाने का भय दूर होता है। दक्षिण दिशा यमराज की होती है। इससे नकारात्मकता दूर रहती हैं और घर में सुख-शांति आती है।

श्री कृष्ण ने किया था नरकासुरका वध

पौराणिक कथा के अनुसार, कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी के दिन भगवान कृष्ण ने नरकासुर का वध किया था, जिसने 16,000 राजकुमारियों को बंदी बना लिया था। उन्होंने उन्हें मुक्त कराया और बाद में उनसे विवाह किया था। नरकासुर के वध के बाद, चारों ओर प्रकाश फैल गया और लोगों ने उत्सव में दीप जलाए। यह परंपरा तब से चली आ रही है। गोबर के दीये जलाना न केवल एक परंपरा है, बल्कि अंधकार पर प्रकाश की विजय का प्रतीक भी है।

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