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Guru Nanak Jayanti 2025: 5 नवंबर को मनाई जाएगी गुरु नानक जयंती, जानिए इतिहास, महत्व और कैसे मनाने हैं ये पर्व

Guru Nanak Jayanti 2025: हर साल गुरु नानक जयंती को प्रकाश पर्व या गुरुपर्व के रूप में मनाया जाता है। यह सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी का जन्मदिवस है। इस साल गुरु नानक देव की 556वीं जयंती मनाई जा रही है। सिख समुदाय के लोग इसे बड़ी श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाते हैं।

MoneyControl Newsअपडेटेड Nov 03, 2025 पर 5:18 PM
Guru Nanak Jayanti 2025: 5 नवंबर को मनाई जाएगी गुरु नानक जयंती, जानिए इतिहास, महत्व और कैसे मनाने हैं ये पर्व
गुरु नानक जयंती के दिन सुबह-सुबह प्रभात फेरियां निकाली जाती हैं।

Guru Nanak Jayanti 2025: पंचांग के अनुसार, कार्तिक पूर्णिमा के दिन हर साल गुरु नानक जयंती को प्रकाश पर्व या गुरुपर्व के रूप में मनाया जाता है। यह सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी का जन्मदिवस है। इस साल गुरु नानक देव की 556वीं जयंती मनाई जा रही है। सिख समुदाय के लोग इसे बड़ी श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाते हैं। गुरु नानक की करुणा, एकता, समानता और निस्वार्थ सेवा की सीख आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी सदियों पहले थीं। उनका "इक ओंकार" (ईश्वर एक है) का संदेश सभी प्राणियों के बीच सद्भाव और दया को बढ़ावा देता है। इस दिन, दुनिया भर के गुरुद्वारे रोशनी से जगमगाते हैं और शबद-कीर्तन से सराबार रहते है। यह दिन जुलूस, लंगन और कई तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रमों के नाम रहता है। ये त्योहार एकजुटता की भावना बढ़ाता है।

गुरु नानक जयंती का इतिहास

गुरु नानक देव जी का जन्म 1469 में राय भोई की तलवंडी में हुआ था, जो अब पाकिस्तान के ननकाना साहिब में है । इस साल बुधवार, 5 नवंबर, 2025 को गुरु नानक देव जी की 556वीं जयंती मनाई जाएगी। के उपलक्ष्य में मनाया जाएगा।

त्योहार कैसे मनाया जाता है?

यह उत्सव कार्तिक पूर्णिमा से दो दिन पहले अखंड पाठ के साथ शुरू होता है। सिखों के पवित्र धर्म ग्रंथ, गुरु ग्रंथ साहिब के 48 घंटे के निरंतर पाठ को अखंड पाठ कहते हैं। गुरु नानक जयंति से एक रात पहले, एक भव्य नगर कीर्तन जुलूस पवित्र ग्रंथ को सड़कों पर ले जाता है। इसके साथ भजन और सिख मार्शल आर्ट गतका का प्रदर्शन करते हुए लोग चलते हैं। गुरु नानक जयंती के दिन सुबह-सुबह प्रभात फेरियां निकाली जाती हैं। इसके बाद लोग सामुदायिक लंगर का हिस्सा बनते हैं। ये साझा भोजन समानता और निस्वार्थ सेवा का प्रतीक हैं।

इस त्योहार की खास पहचान है लंगर

लंगर एक तरह की सामुदायिक भोजना सुविधा है, जिसमें लोग एक साथ जमीन पर बैठकर सादा भोजन करते हैं। इसमें खाना बनाने से लेकर खाना खिलाने और खाने में किसी को कोई रोक-टोक नहीं होती है। कहते हैं कि लंगर या सामुदायिक रसोई की परंपरा गुरु नानक देव जी ने 1500 के दशक में शुरू की थी। यह एक क्रांतिकारी कदम था। उनकी इस पहल ने सामाजिक सीमाओं को तोड़ा और समानता एवं एकता की मिसाल पेश की। आज भी, लंगर गुरु नानक के निस्वार्थ सेवा और करुणा के संदेश का एक सशक्त माध्यम है। दुनिया भर के गुरुद्वारे रोजाना सभी को निःशुल्क भोजन परोसते हैं।

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