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भारतीय बाजार ग्रोथ और लिक्विडिटी को करता है ज्यादा पसंद, वैल्यूएशन को लेकर कोई बड़ी चिंता नहीं : राशेष शाह

राशेष शाह ने कहा कि पिछले कुछ सालों से एफआईआई भारत से पैसा निकाल रहे हैं। ऐसा लगता है कि राज्य चुनाव नतीजों के बाद एफआईआई अब भारत से पैसा नहीं निकालेंगे। चुनाव नतीजों के बाद भारत की नीतिगत स्थिरता की स्थिति में सुधार हुआ है। जैसे ही दुनिया भर में ब्याज दरें गिरेंगी या गिरने के कगार पर होंगी, भारत में बहुत ज्यादा एफआईआई निवेश आएगा

MoneyControl Newsअपडेटेड Dec 06, 2023 पर 7:18 PM
भारतीय बाजार ग्रोथ और लिक्विडिटी को करता है ज्यादा पसंद, वैल्यूएशन को लेकर कोई बड़ी चिंता नहीं : राशेष शाह
एडलवाइस ग्रुप के चेयरमैन राशेष शाह का मानना है कि अमेरिका में ब्याज दरें कम होने के बाद भारत में एफआईआई का निवेश बढ़ेगा

तीन बड़े राज्यों में भाजपा की हालिया जीत के बाद बाजार का रिकॉर्ड तोड़ प्रदर्शन जारी है। इस जोरदार तेजी के बीच अब बाजार के महंगे होने की बात पर चर्चा होने लगी है। हालांकि, एडलवाइस ग्रुप के चेयरमैन राशेष शाह का मानना है कि भारतीय इक्विटी बाजार ग्रोथ और लिक्विडिटी की तरह वैल्यूएशन के प्रति भी उतना संवेदनशील नहीं है। शाह ने मनीकंट्रोल को दिए एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में कई मुद्दों पर बात की। यहां हम उसका संपादित अंश दे रहे हैं

हालिया चुनावी नतीजों पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि छत्तीसगढ़ के नतीजे आश्चर्यजनक रहे। इससे यह पता चलता है कि यह सरकार जो बहुत सी चीजें कर रही है वह लोगों को अच्छी लग रही हैं। निवेशक स्थिरता और निश्चितता चाहते हैं और अगर इससे 2024 के आम चुनावों के लिए अधिक निश्चितता मिलती है तो यह अच्छी बात होगी, खासकर विदेशी निवेशकों के लिए।

इस बातचीत में उन्होंने आगे कहा कि बहुत की कंपनियां इस समय पूंजीगत व्यय पर खर्च करने के बजाय अधिग्रहण करके विस्तार करना चाह रही हैं। ब्राउनफील्ड विस्तार और एम एंड ए (विलय और अधिग्रहण) इसलिए हो रहे हैं क्योंकि कंपनियां तेजी से नतीजे चाहती हैं।

ग्रीनफील्ड विस्तार में लागत में बढ़त और अनुमोदन प्रक्रियाओं आदि को लेकर अनिश्चितता रहती है। वर्तमान में, कंपनियां जल्दी से नकदी हासिल करना चाहती हैं जो विलय और अधिग्रहण या ब्राउनफील्ड विस्तार के जरिए ही आती। कंपनी अतीत के भारी कर्ज बोझ को देखकर डरी हुई हैं इसलिए ग्रीनफील्ड कैपेक्स में निवेश करने का जोखिम लेने को तैयार नहीं हैं। वे अपनी ज़रूरत से ज़्यादा नकदी बना रहे हैं। लेकिन अब ग्रोथ की भूख जाग रही है। अगले 18 महीनों में विलय और अधिग्रहण या ब्राउनफील्ड विस्तार के ये अवसर खत्म हो जाएंगे। ऐसे में कॉरपोरेट्स को अधिक जोखिम उठाना होगाऔर नई ग्रीनफील्ड परियोजनाएं लगानी होंगी। तभी देश में वास्तविक पूंजीगत व्यय शुरू होगा। तब तक हम सरकारी पूंजीगत व्यय और खर्च पर निर्भर रहेंगे।

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