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Kalpvas 2026: तन और मन की शुद्धि का मार्ग है कल्पवास, जानें इसका महत्व और और अर्थ

Kalpvas 2026: माघ का महीना धार्मिक दृष्टि से बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। इसमें बहुत बड़ी संख्या में लोग संगम तट पर कल्पवास करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार कल्पवास तन और मन की शुद्धि के लिए किया जाता है। आइए जानें इसका अर्थ और धार्मिक महत्व

MoneyControl Newsअपडेटेड Dec 22, 2025 पर 7:46 PM
Kalpvas 2026: तन और मन की शुद्धि का मार्ग है कल्पवास, जानें इसका महत्व और और अर्थ
परंपरा के अनुसार, कल्पवास की शुरुआत पौष माह की पूर्णिमा से की जाती है।

Kalpvas 2026: कल्पवास को हिंदू धर्म में बहुत पवित्र धार्मिक अनुष्ठान माना जाता है। कल्पवास तीर्थों के राजा कहे जाने वाले तीर्थराज यानी प्रयागराज में हर साल पौष पूर्णिमा से शुरू होकर माघ माह की पूर्णिमा तक किया जाता है। इस माह में जप, तप,स्नान और दान किया जाता है। कल्पवास के दौरान श्रद्धालु शरीर की ही नहीं आत्मा का शुद्धि के लिए कठिन नियमों का पालन करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, माघ माह में इन कामों को करने से अक्षय पुण्य प्राप्त होता है। यानी इन कामों का पुण्य कभी समाप्त नहीं होता। कल्पवास के दौरान सात्विक नियमों का पालन करने वाले भक्त जीवन-मृत्यु के चक्र से छूट जाते हैं। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती के संगम तट पर बिताया जाने वाला एक महीना 'कल्पवास' कहलाता है।

कल्पवास का अर्थ

एक निश्चित समय (कल्प) तक पवित्र स्थान पर निवास (वास) करना कल्पवास का अर्थ है। परंपरा के अनुसार, कल्पवास की शुरुआत पौष माह की पूर्णिमा से की जाती है। हालांकि, अपनी क्षमता के अनुसार श्रद्धालु 5, 11 और 21 दिनों का संकल्प लेकर कल्पवास कर सकते हैं। अध्यात्मिक रूप से कल्पवास एक साधना है, जिसमें व्यक्ति कुछ समय के लिए सांसारिक आकर्षणों, भोग-विलास और मोह-माया से दूर होकर सिर्फ भगवान की अराधना में लीन रहता है।

कल्पवास के नियम

तीन बार स्नान : कल्पवास करने वाले सभी भक्तों को इस सबसे कठिन नियम का पालन करना होता है। उन्हें कड़ाके की ठंड में रोजाना तीन बार (सुबह, दोपहर और शाम) संगम में स्नान करना होता है। इसे शरीर और मन की शुद्धि का मार्ग माना जाता है।

एक समय का भोजन : कल्पवास के दौरान वह सिर्फ एक बार 'अल्पाहार' या सात्विक भोजन करते हैं। यह भोजन अपने हाथों से मिट्टी के चूल्हे पर बनाया जाता है।

जमीन पर सोना : कल्पवास का पलन करने वाले भक्त बिस्तरों के बजाय जमीन पर पतली चटाई बिछाकर सोते हैं। इसे 'भूमि शयन' कहा जाता है, जो अहंकार को खत्म करने का प्रतीक है।

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