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नर्मदा नदी के तट पर बना ये दो शिवलिंग है काफी खास, दर्शन मात्र से दूर हो जाते हैं सारे कष्ट

ओंकारेश्वर मंदिर के साथ ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग (अमरेश्वर) के दर्शन भी जरूरी माने जाते हैं। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार, यहां भगवान शिव ने ऋषियों को दर्शन दिए थे और इसे तपस्या के लिए उपयुक्त स्थान बताया गया है। इन दोनों शिवलिंगों की कथा, आर्किटेक्चर और धार्मिक महत्व से जुड़ी कई रोचक बातें हैं

MoneyControl Newsअपडेटेड Jul 11, 2025 पर 9:03 PM
नर्मदा नदी के तट पर बना ये दो शिवलिंग है काफी खास, दर्शन मात्र से दूर हो जाते हैं सारे कष्ट
यहां श्रद्धापूर्वक पूजन-अर्चना करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं (Photo: Canva)

मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में स्थित ओंकारेश्वर और ममलेश्वर शिवलिंग, भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता के दो अनमोल रत्न हैं। नर्मदा नदी के बीच मंधाता या शिवपुरी नामक द्वीप पर स्थित ओंकारेश्वर मंदिर, भगवान शिव के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है, जबकि ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग को इसका अभिन्न और पूरक स्वरूप माना जाता है। इन दोनों शिवलिंगों की कथा, आर्किटेक्चर और धार्मिक महत्व से जुड़ी कई रोचक बातें हैं।

ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का नाम ‘ओंकार’ शब्द से आया है, जो सृष्टि की उत्पत्ति का प्रतीक माना जाता है। कहा जाता है कि नर्मदा नदी के प्रवाह से बना यह द्वीप ‘ॐ’ के आकार का है, जिससे इसका नाम ओंकारेश्वर पड़ा। यहां का शिवलिंग प्राकृतिक है, जिसे किसी मनुष्य ने नहीं बनाया। ओंकारेश्वर मंदिर का इतिहास प्राचीन भील राजाओं से जुड़ा है, जिन्होंने इस क्षेत्र को अपनी राजधानी बनाया था। राजा मान्धाता की तपस्या और भगवान शिव के प्रकट होने की कथा इस स्थल को और भी पवित्र बनाती है।

ओंकारेश्वर मंदिर के साथ ही, नर्मदा नदी के दक्षिणी तट पर स्थित ममलेश्वर ज्योतिर्लिंग (जिसे अमरेश्वर भी कहा जाता है) का भी विशेष स्थान है। मान्यता है कि ओंकारेश्वर यात्रा ममलेश्वर के दर्शन के बिना अधूरी मानी जाती है। स्कंद पुराण, शिव पुराण और अन्य धर्मग्रंथों में ममलेश्वर का उल्लेख मिलता है। कहा जाता है कि यहां भगवान शिव ने ऋषियों को दर्शन दिए थे और इस स्थान को तप और साधना के लिए उपयुक्त बताया था।

किस शैली में बना है ममलेश्वर मंदिर

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