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Rajasthan Election 2023 : अशोक गहलोत से मतदाता नाराज नहीं, लेकिन कांग्रेसी विधायकों से गुस्सा नुकसान पहुंचा सकता है

पांच साल सरकार चलाने के बाद भी अशोक गहलोत की स्वीकार्यता में कमी नहीं आई है। इसके उलट 2018 में चुनावों से पहले वसुंधरा राजे को लेकर मतदाता उलझन में दिख रहे थे। उनमें गुस्सा था। भाजपा के कार्यकर्ता भी उन्हें घमंडी और ऐसा नेता के रूप में देख रहे थे, जिस तक पहुंचना बहुत मुश्किल था। तब यह स्लोगन काफी सुनने को मिलता था, "No CM after 8 PM"। दूसरा स्लोगन था, ''मोदी तुझसे वैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं''

MoneyControl Newsअपडेटेड Nov 22, 2023 पर 3:17 PM
Rajasthan Election 2023 : अशोक गहलोत से मतदाता नाराज नहीं, लेकिन कांग्रेसी विधायकों से गुस्सा नुकसान पहुंचा सकता है
गहलोत ने इस बार खुद को लोगों के गुस्सा की वजह नहीं बनने दी है। लेकिन, उनके विधायकों के बार में ऐसा नहीं कहा जा सकता। कई विधायकों के खिलाफ मतदाताओं में गुस्सा है। लोगों का मानना है कि उनके प्रतिनिधियों ने क्षेत्र के विकास के लिए उतना काम नहीं किया, जितनी उम्मीद थी।

अनिता कात्याल

राजस्थान में विधानसभा चुनावों के लिए प्रचार खत्म होने जा रहा है। पिछले कई सालों में ऐसा पहली बार है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत (Ashok Gehlot) के खिलाफ लोगों में किसी तरह की नाराजगी नहीं दिख रही है। इसके बावजूद गहलोत की लोकप्रियता कांग्रेस को दोबारा सत्ता में लौटाने के लिहाज से नाकाफी लगती है। पांच साल सरकार चलाने के बाद भी गहलोत की स्वीकार्यता में कमी नहीं आई है। इसके उलट 2018 में चुनावों से पहले वसुंधरा राजे को लेकर मतदाता उलझन में दिख रहे थे। उनमें गुस्सा था। भाजपा के कार्यकर्ता भी उन्हें घमंडी और ऐसा नेता के रूप में देख रहे थे, जिस तक पहुंचना बहुत मुश्किल था। तब यह स्लोगन काफी सुनने को मिलता था, "No CM after 8 PM"। दूसरा स्लोगन था, ''मोदी तुझसे वैर नहीं, वसुंधरा तेरी खैर नहीं।'' इससे पता चलता था कि हवा वसुंधरा के पक्ष में नहीं थी। 2013 में यही बात गहलोत के साथ देखने को मिली थी।

गहलोत ने हर वर्ग के लिए स्कीम शुरू की है

2013 में लोगों की सोच थी कि गहलोत ने कोई काम नहीं किया है। हालांकि, मुख्यमंत्री ने कुछ वेल्फेयर स्कीम के ऐलान किए थे। लेकिन, चुनाव से कुछ ही दिन पहले ऐलान होने से इन्हें लागू नहीं किया जा सका था। लोगों को लगा था कि मुख्यमंत्री के बड़े-बड़े ऐलान का मकसद सिर्फ चुनावों को जीतना है। इस वजह से मतदाताओं का नाराजगी उनके सत्ता से बाहर जाने की वजह बनी। ऐसा लगता है कि गहलोत ने पिछली गलतियों से सबक लिया है। इस बार उन्होंने ऐलान के बाद उन्हें लागू करने पर जोर दिया है। उनकी कोशिश समाज के हर वर्ग-महिला, किसान, युवा, सरकारी एंप्लॉयी के लिए स्कीम का ऐलान करने की थी। पुरानी पेंशन योजना को दोबारा लागू करने का ऐलान भी सरकार ने किया। साथ ही गहलोत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरह अकेले चुनाव अभियान का नेतृत्व किया।

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