"कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की

"कहीं एक मासूम नाज़ुक सी लड़की
बहुत खूबसूरत मगर सांवली सी
मुझे अपने ख़्वाबों की बाहों में पाकर
कभी नींद में मुस्कुराती तो होगी
उसी नींद में कसमसा-कसमसा कर
सरहने से तकिये गिराती तो होगी।"
UP Loksabha Election 2024: अमरोहा (Amroha) में घुसते ही प्रसिद्ध गीतकार कमाल अमरोही के गीत की ये पंक्तियां बार-बार याद आती हैं। कमाल अमरोही का ये शहर अमरोहा और मीना कुमारी की ससुराल अमरोहा। अमरोहा के लोगों को इस बात का नाज है कि कमाल अमरोही इसी शहर के थे और यही शहर मीना कुमारी की ससुराल भी है। यह शहर हजरत सैयद शाह शफरुदीन उद्दीन साहब की दरगाह के लिए भी प्रसिद्ध है, जिसे दुनिया भर में लोग बिच्छू वाली मजार के नाम से जानते हैं। इस मजार का इतिहास 850 साल पुराना है। इस मजार में बिच्छू घूमते हैं, लेकिन किसी को काटते नहीं।
अमरोहा में किसकी होगी फतह?
इस चुनावी मौसम में अमरोहा में ये जोड़ घटाव चल रहा है कि कौन जीतेगा कौन हारेगा? मुरादाबाद-दिल्ली हाईवे पर एक छोटी सी चाय की गुमटी। इस गुमटी पर बैठे पास के ही गिडौली गांव के कुछ मुस्लिम युवा इस बहस में लगे हैं कि लोकसभा चुनाव में यहां से कौन जीतेगा। BJP जीतेगी, कांग्रेस जीतेगी या BSP।
बहस इतनी तीखी हो रही है कि लगा की आपस में झगड़ा हो जाएगा। बहस में शामिल नौशाद अली कहते हैं कि बीजेपी के कंवर सिंह तंवर अच्छा काम कर रहे हैं। लोगों की मदद करते हैं। इसलिए इस बार लगता है वही चुनावी लड़ाई जीतेंगे।
हालांकि, इस बहस में शामिल मोहम्मद अकरम इस बात को नकार देते हैं कि कंवर सिंह तवर इस बार चुनाव जीत जाएंगे। वो कहते हैं कि 4 जून के बाद मिलना। जीतेंगे कांग्रेस के कुंवर दानिश अली ही, लेकिन नौशाद उनकी बात मानने को तैयार नहीं।
किन समीकरणों से मजबूत हैं कंवर सिंह तंवर?
इस बहस में कई और लोग भी जुड़ जाते हैं और सारी चर्चा इस बात पर टिक जाती है कि आखिर वो कौन से समीकरण हैं, जो कंवर सिंह तंवर को मजबूत कर रहे हैं। मोहम्मद नाजिम कहते हैं कि दानिश अली ने कोई काम नहीं किया। सर्फ दिल्ली में नेता गिरी की है। इसलिए लोग उनके साथ नहीं है। जबकि कंवर सिंह तंवर लगातार इलाके में दौरा करते रहे और लोगों के सुख-दुख से जुड़े रहे।
वास्तव में कुंवर दानिश अली पिछली बार BSP के टिकट पर यहां से लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) जीते थे। तब समाजवादी पार्टी बहुजन समाज पार्टी और राष्ट्रीय लोक दल का गठबंधन था। इस बार कांग्रेस और सपा के गठबंधन से कांग्रेस के टिकट पर दानिश अली चुनाव मैदान में हैं और बहुजन समाज पार्टी उन्हें सबक सिखाने पर उतारू है।
BSP ने उतारा मु्स्लिम उम्मीदवार
यही नहीं बसपा ने यहां पर मुजाहिद हुसैन को टिकट दिया है। बसपा प्रत्याशी डासना के नगर पंचायत अध्यक्ष बागे जहां के पति हैं और पेशे से डॉक्टर हैं और इलाके में काम करते रहे हैं।
वैसे तो मोहम्मद नाजिम यह नहीं मानते कि बसपा प्रत्याशी सपा या कांग्रेस का कोई नुकसान कर पाएंगे, लेकिन इस बात पर सभी सहमत हैं कि वो कुछ भी नुकसान न करें, लेकिन मुसलमानों के बीच 20-25000 वोट तो ले ही जाएंगे।
दानिश और कांग्रेस से क्यों नाराज हैं लोग?
एक और अलग कहानी है, जो दानिश अली को कमजोर कर रही है। वो है जमीन पर कांग्रेस का बहुत मजबूत जनाधार न होना। दानिश अली पर यह भी आरोप है कि वो ज्यादा जमीन से जुड़े नहीं रहे।
पास के ही निली खेड़ा के नाजिश कहते हैं कि अपने गांव से 98 प्रतिशत वोट दानिश को दिलवाया था, लेकिन उन्होंने कुछ नहीं किया। एक बिजली के बल्ब के लिए मैं दौड़ता रहा और उन्होंने एक बल्ब तक नहीं दिया। अब आगे चुनाव में सबक सिखा देंगे।
वो कांग्रेस से इस बात से नाराज हैं कि उसने तमाम विरोध के बावजूद दानिश को टिकट दे दिया। वो कहते हैं किसी और को टिकट दे देते, क्या नुकसान हो जाता।
हाईवे पर ही एक ढाबे के मैनेजर राहुल पाल, जो सहसपुर अली के रहने वाले हैं कहते हैं कि दानिश अली पिछली बार महा गठबंधन के कारण चुनाव जीते थे। लेकिन इस बार महागठबंधन नहीं है और मोदी को पिछड़े और दलितों के एक वर्ग का वोट मिल रहा है, इसलिए कंवर सिंह तंवर ही चुनाव जीतेंगे।
दानिश अली के सामने क्या हैं मुश्किलें?
वहीं पर मिल जाते हैं धर्म सिंह पवार, जो सपा का समर्थन कर रहे हैं और दानिश के साथ हैं। वो कहते हैं कि सब लोग कांग्रेस सपा के साथ हैं। वास्तव में पिछली बार दानिश अली जितनी आसानी से यह जंग जीत गए थे, इस बार उनके लिए मैदान उतना ही मुश्किल हो गया है।
कंवर सिंह तंवर लोगों से जुड़े रहे हैं। लड़कियों की शादी कराना, जनहित से जुड़े काम और मुस्लिम क्षेत्रों में लोगों की मदद करते हैं। यहां पर मोदी का नाम तो है ही लेकिन उससे भी बड़ा मुद्दा कानून व्यवस्था का है। लोग मोदी का नाम लेते हैं लेकिन उससे ज्यादा नाम योगी आदित्यनाथ का लेते हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि उनकी बहू बेटी इसलिए सुरक्षित है क्योंकि CM ने अपराधियों पर नकेल डाल दी है। इस मुस्लिम बहुल सीट पर 2014 में कंवर सिंह तंवर जीते थे लेकिन 2019 में उन्हें दानिश अली ने हरा दिया था।
दानिश अली को माफी मिलेगी या सजा
बसपा सुप्रीमो मायावती ने कंवर सिंह तंवर को पार्टी में काफी अहमियत दी लेकिन जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव नजदीक आया दानिश अली कांग्रेस के नजदीक होते चले गए। बदले में इस बार कांग्रेस ने भी सिर्फ दानिश अली के लिए अमरोहा सीट सपा से ली। जोया के प्रवीण सिंह कहते हैं कि पिछली बार गठबंधन न होता तो दानिश अली यहां चुनाव नहीं जीत पाते। और अब जबकि इस बार गठबंधन नहीं है तो परिणाम बता देंगे कि दानिश अली कितने गहरे पानी में है।
कांग्रेस के तमाम कार्यकर्ता इस बात को समझ रहे हैं। लेकिन बीजेपी लगातार आक्रामक रुख अपनाए हुए हैं। दानिश अली के सामने सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि उनसे नाराज होने वाले मुसलमानों की संख्या भी कम नहीं है। और नाराज मतदाता या तो बीजेपी के कंवर सिंह तंवर के साथ जा रहे हैं या फिर बसपा के साथ। बसपा किसी तरह दानिश अली को किनारे लगा देना चाहती है। इसलिए दानिश अली की राह आसान नहीं है। रोशन जाटव कहते हैं कि दानिश अली ने बहन जी के साथ धोखा किया है और हम लोग उन्हें सबक सिखाएंगे। फिलहाल यहां पर लड़ाई त्रिकोणीय है लेकिन बीजेपी कहीं ज्यादा बेहतर चुनाव लड़ रही है। वास्तव में एक ओर भाजपा का सिंबल है मोदी का नाम है और खुद प्रत्याशी की अपनी मजबूत पहचान और गहरी जड़े हैं। यहां पर लड़ाई बहुत रोचक है।
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